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    नागपुर. पहले एसटी वर्ग से अध्यक्ष पद का चुनाव और फिर विषय समिति सभापतियों के चुनाव में जिस तरह से जिला परिषद में सत्ताधारी कांग्रेस ने अपने सीनियर सदस्यों को गुटबाजी के चलते किनारे किया, उसका परिणाम अब नजर आने लगा है. अध्यक्ष पद चुनाव के समय बागी हुए सदस्य और सभापति चुनाव में भी केवल एक गुट के लोगों को कुर्सी दी गई, उससे पार्टी के नाराज सदस्य अब अपनी पार्टी लाइन के बाहर जाकर बैठकों व आमसभा में पदाधिकारियों को घेरने का काम कर रहे हैं.

    5 दिसंबर को हुई सभा में ऐसा ही नजारा दिखा. सत्ताधारी पार्टी के बागियों का तो अब खुलेआम विपक्ष भाजपा को साथ मिल रहा है जिससे बीते ढाई वर्ष के कार्यकाल में हासिये में रहे विपक्ष को बूस्टर मिल गया है. नवनियुक्त अध्यक्ष मुक्ता कोकड्डे की अध्यक्षता में हुई पहली सभा में विपक्ष हर विषय पर भारी पड़ा क्योंकि उसे बागियों का साथ मिला. बागी सदस्य नाना कंभाले तो भाजपा के ही खेमे में भाजपा के सुभाष गूजरकर और शिंदे गुट शिवसेना सदस्य संजय झाड़े के साथ बैठे नजर आए. उन्होंने माइक, फाइलें व डेस्क फेंककर विरोध करने में भी विपक्ष का साथ दिया. 

    शांत सदस्य भी उठाने लगे आवाज

    हर सभा के पूर्व पार्टी सदस्यों की बैठक अध्यक्ष के बंगले पर होती रही है. ऐसी बैठकों में पार्टी की रणनीति तय की जाती है. इस सभा में तो हमेशा शांत रहने वाले और अध्यक्ष के हर निर्णय पर हामी भरने वाले कुछ सदस्य भी सर्कलों में निधि के भेदभावपूर्ण तरीके से किये गए वितरण के खिलाफ आवाज उठाते नजर आए. अरुण हटवार ने अध्यक्ष से निधि वितरण के निर्णयों में संशोधन की मांग भी पूरजोर तरीके से की. साथ ही अनेक मुद्दों पर जवाब भी मांगा. सबसे सीनियर सदस्य शांता कुमरे जो हमेशा पार्टी पदाधिकारियों के बचाव में अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए उठ खड़ी होती थीं वे पूरे समय शांत ही बैठी रहीं. वे अध्यक्ष पद की सबसे प्रबल दावेदार थीं लेकिन पूर्व मंत्री सुनील केदार ने अपनी पसंद के पदाधिकारियों को मौका दिया जब अध्यक्ष व सभापतियों के चुनाव में नाम फाइनल किये गये थे तभी से चर्चा शुरू हो गई थी कि आगे कांग्रेस में नाराज सदस्यों की भूमिका स्पष्ट नजर आने लगेगी और वह पहली सभा में नजर भी आई.

    पदाधिकारियों के सामने होगी चुनौती

    कोकड्डे के पास सभा चलाने का अनुभव नहीं है. वे नई हैं. वहीं सभापतियों में भी उपाध्यक्ष कुंदा राऊत को छोड़ दें तो सभी नये हैं. राजकुमार कुसुंबे जरूर पहले भी सदस्य रह चुके हैं लेकिन वे आक्रामक नहीं हैं. इसका फायदा विपक्ष निश्चित तौर पर उठाने लगा है. जब सत्ताधारियों में एकता नहीं हो तो विपक्ष को मौका मिल ही जाता है. ऐसा ही अब जिला परिषद में हो रहा है. विपक्ष को तो एकजुटता बनाकर संभाला भी जा सकता है लेकिन जब पार्टी के बागी ही उसके साथ हों तो यह चुनौती बन जाती है. सत्ताधारी कांग्रेस पहले ढाई वर्ष विपक्ष पर काफी भारी पड़ी. अध्यक्ष रश्मि बर्वे अकेले ही विपक्ष को करारा जवाब दे दिया करती थीं. मौजूदा अध्यक्ष सभा में सभापति लेकूरवाले व उपाध्यक्ष राऊत के सहारे सभा में प्रोसिडिंग देती नजर आईं. यह कमजोरी विपक्ष का ताकत बन सकती है. आगे अगर विपक्ष को करारा जवाब देना है तो कोकड्डे को पूरी तैयारी करनी होगी. 

    विभागीय आयुक्त से शिकायत

    विपक्षी नेता आतिश उमरे के नेतृत्व में भाजपा सदस्यों ने सभा में बिना चर्चा किये सारे विषयों को मंजूर करने के नियमबाह्य बताते हुए जिप अध्यक्ष पर कार्रवाई करने की मांग विभागीय आयुक्त से की है. साथ ही इस सभा के सारे निर्णयों को रद्द करने की मांग भी की है. इस दौरान उनके साथ कांग्रेस के बागी सदस्य नाना कंभाले भी थे.