
नागपुर. शहर में खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए मैदानों के विकास और सुविधाएं मुहैया कराने की घोषणा पर घोषणा होती रही है, मगर उसे अमल में नहीं लाया जा रहा है. जनप्रतिनिधि अपने भाषण में शहर में खेल विकास के सपने दिखाते रहे हैं. मगर अब तक कुछ ठोस पहल की गई हो, ऐसा नजर नहीं आ रहा. शहर की अमूमन बस्तियों में एक नहीं, 2-4 छोटे-छोटे मैदान हैं, मगर कहीं उसका उपयोग कूड़ादान के रूप में हो रहा है तो कहीं झाड़ियां उग आई हैं. कहीं गड्ढे तो कहीं पत्थरों के ढेर पड़े हैं. जिसके कारण खेल के लिए इन मैदानों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. कुछ बड़े मैदानों के चारों ओर कचरा-मलबा आदि डालने के कारण मैदान सिकुड़ गए हैं और ऐसे मैदानों में खेलने के लिए जगह छोटी होती जा रही है.
लीज पर देने की योजना खटाई में
मनपा प्रशासन खेल के मैदानों के विकास के लिए खेल संगठनों को लीज पर देने की योजना की भी कुछ वर्ष पूर्व घोषणा कर चुका है, मगर उस पर भी अब तक अमल नहीं किया गया. शहर के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की खेल विकास के प्रति घोर उदासीनता के चलते शहर के खेल मैदानों का विकास भी नहीं हो पा रहा है. खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जब खेलने के लिए मैदान ही नहीं होंगे तो अन्य सुविधाओं की बातें तो दूर की कौड़ी हैं.
इच्छाशक्ति का अभाव
बस्तियों के मध्य में जो मैदान हैं उनमें से अधिकतर मैदान के किनारे-किनारे पानठेले, चाय, कबाड़ी, सलून, कपड़े प्रेस करने वाले, पंक्चर बनाने वालों ने कब्जा कर रखा है. खेल विकास की बात करने वाले नगर प्रशासन के जोनल अधिकारियों को लेकिन इससे कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा. अनेक स्कूलों के मैदान तक अतिक्रमण, गंदगी, कूड़ादान की चपेट में हैं. बच्चों को खेलने के लिए जगह नसीब नहीं है. अनेक कालोनियों में क्रिकेट, फुटबाल आदि खेलने वाले युवा ही स्वयं मैदानों की सफाई कर उसका उपयोग खेलने के लिए कर रहे हैं. मनपा के कर्णधार नेता हमेशा मैदानों के विकास की घोषणा तो करते रहते हैं मगर उनकी इच्छाशक्ति खेल विकास की आधारभूत जरूरत भी मुहैया कराने की नजर नहीं आती.
मेन्टेनेन्स करने वाला कोई नहीं
शहर के अनेक बस्तियों में जहां खिलाड़ी और युवा मैदानों की स्वयं ही देखरेख, सफाई आदि स्वयमेव होकर कर लिया करते थे, वे भी अब मनपा और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण उदास हो चुके हैं. कई मैदानों में आधी-अधूरी बाउंड्रीवाल बनाकर छोड़ दी गई है तो कहीं फुटबाल, बास्केटबाल आदि के लिए लगाए गए पोल ही उखड़ चुके हैं. कहीं मैदान की रेलिंग लोहाचोरों ने काटकर बेच खाया है तो किसी मैदान में आयोजनों में लगने वाले पंडालों के कारण गड्ढे हो गए हैं. शहर के युवाओं और खिलाड़ियों को बस यही इंतजार है कि आखिर यहां के मैदान खेलने लायक कब बनाए जाएंगे.
समतलीकरण व सफाई भी नहीं
शहर की अमूमन हर कालोनी में नियमानुसार प्लेग्राउंड की जगह छोड़नी ही पड़ती है. लगभग सभी बस्तियों में छोटे-मध्यम-बड़े मैदान भी हैं जहां वहीं के लोगों के खेलने के लिए कम से कम मैदान को समतल, साफ सुथरा तो रखा ही जा सकता है. लेकिन देखा जा रहा है कि अधिकतर मैदानों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. मैदानों में मवेशियों का डेरा भी लगा रहता है.
कुछ खेल के मैदान तो शादी-समारोहों के लिए उपयोग में लाये जा रहे हैं. खेलने लायक तो ये बचे ही नहीं हैं. गड्ढों और ईंट-पत्थरों की भरमार है. जिन युवाओं को फुटबाल, क्रिकेट या अन्य खेलों की प्रैक्टिस करनी होती है वही मैदान की उतनी जगह को साफ कर लेते हैं. मनपा प्रशासन का ध्यान मैदानों को विकसित करने की ओर बिल्कुल नहीं है. कई मैदानों में तो बाउंड्रीवाल और लाइट की व्यवस्था नहीं होने के कारण असामाजिक तत्वों का रात के डेरा बन जाते हैं. जहां रात में शराब पी जाती है.