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    नागपुर. केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू करने की घोषणा के बाद विश्वविद्यालयों में भी बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा है. नई शिक्षा नीति से छात्रों को तो लाभ मिलेगा लेकिन उससे पहले आवश्यक है कि सरकार विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर विभागों सहित अनुदानित महाविद्यालयों में पद भर्ती पर गंभीरता बरते. वर्तमान में राज्यभर के विश्वविद्यालयों में प्राध्यापकों की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए आवश्यक है कि विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक की संख्या उपयुक्त हो.

    विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर विभाग सहित संलग्नित अनुदानित महाविद्यालयों में भी सरकार की मंजूरी से ही प्राध्यापकों के पद भरे जाते हैं लेकिन कई वर्षों से पद भर्ती पर एक तरह से पाबंदी लगी है. पिछले दिनों सरकार ने विश्वविद्यालयों में पद भर्ती की घोषणा की है लेकिन यह घोषणा भी पिछली घोषणाओं की तरह ही न हो जाए. इसकी मुख्य वजह से इससे पहले सरकार ने विश्वविद्यालयों में 50 फीसदी पद भर्ती की मंजूरी दी थी लेकिन बाद में इसे रद्द कर दिया गया. स्थिति यह है कि अनेक विभाग अंशकालीन प्राध्यापकों को भरोसे चलाए जा रहे हैं. इससे शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने में दिक्कतें आ रही हैं.

    नागपुर विवि में आधे पद खाली 

    यदि बात राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय की जाए तो स्थिति संतोषजनक नहीं है. विवि के स्नातकोत्तर विभागों में प्राध्यापकों के 243 पद मंजूर हैं लेकिन केवल 103 ही भरे हैं. यानी आधे से ज्यादा 140 पद रिक्त हैं. स्थिति यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स व कम्प्यूटर साइंस विभाग में एक भी नियमित प्राध्यापक नहीं होने से यह विभाग प्रभारी के भरोसे ही चल रहे हैं. सभी विभागों में कुल मंजूर 555 पदों में से 330 रिक्त पड़े हैं. अनुसंधान की दिशा में विवि लगातार पिछड़ता जा रहा है.

    रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार द्वारा निरंतर रूप से लापरवाही बरती जा रही है. यही वजह है कि अब विवि केवल डिग्री देने वाली संस्था बनता जा रहा है. विवि के औषधिशास्त्र विभाग में सर्वाधिक 23 पद मंजूर हैं. इनमें से 11 रिक्त हैं. बैरि. शेषराव वानखेड़े बी.एड. महाविद्यालय में मंजूर 21 पदों में से 14 खाली हैं. इसी तरह भाषाशास्त्र विभाग में 10 मंजूर पदों में से मात्र एक नियमित प्राध्यापक हैं. विवि के संस्कृत, पाली व प्राकृत, समाजशास्त्र, तत्वज्ञान, मायक्रोबायोलॉजी, सांख्यिकीशास्त्र, गांधी विचारधारा, फाइन आर्ट्स विभाग में केवल एक-एक प्राध्यापक नियुक्त हैं. 

    पुरानी पद्धति में हो बदलाव 

    यह स्थिति केवल नागपुर विश्वविद्यालय की ही नहीं है बल्कि राज्यभर के लगभग सभी विश्वविद्यालयों की बनी हुई है. विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर विभागों में अध्यापन के साथ ही अनुसंधान भी आवश्यक है. लेकिन प्राध्यापकों की कमी की वजह से अनुसंधान लगभग कम ही हो गया है. विश्वविद्यालय केवल डिग्री देने वाली संस्था बनते जा रहे हैं. पारंपरिक पाठ्यक्रमों में समय के अनुसार बदलाव नहीं होने से भी छात्रों को अपग्रेड नॉलेज नहीं मिल रहा है.

    केवल ऑटोनामस और राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं में ही समय के अनुसार पाठ्यक्रम को अपग्रेड किया जाता है लेकिन पारंपरिक विश्वविद्यालयों में आज भी पुरानी पद्धति ही लागू है जिसके अनुसार विविध प्राधिकरणों की मंजूरी आवश्यक होती है. सरकार ने यूनिवर्सिटी एक्ट में बदलाव तो किया है लेकिन पाठ्यक्रम, अपग्रेडेशन और छात्र विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों का समावेश कम ही है. विश्वविद्यालयों में गुणवत्ता को स्तरीय बनाने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे. प्राध्यापकों की नियुक्ति के साथ ही व्यवस्था को अपग्रेड करना होगा. तभी युवाओं को डिग्री हासिल करने के बाद आसानी से रोजगार मिल सकेगा.