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    नागपुर. किसी समय पूरे शहर में आतंक मचाने वाली राजा गौस की गैंग को मोका की विशेष अदालत से राहत मिल गई. मोका की विशेष अदालत के न्यायाधीश एमएस आजमी ने गौस और उसकी गैंग को मोका के मामले में बरी कर दिया. वहीं सराफा व्यापारी की दूकान में डकैती डालने के मामले में गैंग के 2 सदस्यों को 10 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई.

    11 अप्रैल 2013 को नंदनवन पुलिस ने सराफा व्यवसायी सुरेंद्र गुमगांवकर की शिकायत पर राजा गौस वारिस अली, मोइन उर्फ लल्या मोहम्मद अंसारी, शोयब उर्फ शिबू सलीम खान, बिसेन सिंह रम्मूलाल उइके, सत्येंद्र राजबहादुर गुप्ता और इमरान उर्फ इम्मू इस्माइल खान के खिलाफ डकैती, हत्या का प्रयास और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था. इस गैंग ने पूरे शहर में आतंक मचा रखा था. यहां तक कि पुलिस कर्मियों पर भी गोली चलाने से नहीं चूके. उनके गुनाहों की लंबी फेहरिस्त के चलते पुलिस ने मोका लगाया था. शिबू और बिसेन सिंह को न्यायालय ने डकैती में दोषी पाया, जबकि मोका में सभी को राहत मिल गई.

    क्या था मामला ?

    11 अप्रैल 2013 को सुरेंद्र गुमगांवकर हिवरीनगर स्थित अपने महालक्ष्मी ज्वेलर्स में बैठे थे. उनके पिता और नौकर अनिकेत भी वहीं मौजूद थे. दोपहर 2.45 बजे के दौरान गौस अपनी गैंग के साथ 3 मोटरसाइकिलों पर वहां पहुंचा. 3 आरोपी दूकान में घुसे. 2 ने पिस्तौल निकाली और 1 के पास चाकू था. आरोपियों ने दूकान से सोने के मणी की मालाएं और मोबाइल लूट लिया. कोई सुराग न मिले इसीलिए दूकान में लगा सीसीटीवी का डीवीआर भी निकाल लिया. इसी दौरान एक आरोपी ने कर्मचारी अनिकेत पर गोली चलाई.

    अनिकेत वहां से पड़ोसी की किराना दूकान में भाग निकला. आरोपी भी अपनी बाइक पर सवार होकर भाग लिए. इसके बाद भी लगातार आरोपी लूट की वारदातों में सक्रिय थे. इस दौरान आरोपियों ने पुलिस पर भी फायरिंग की. काफी मशक्कत के बाद पुलिस को आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता मिली. शीत सत्र के दौरान गौस को छोड़कर अन्य आरोपी जेल से भाग निकले थे. इससे राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए थे. 

    21 गवाहों के बयान हुए दर्ज 

    इंस्पेक्टर सुनील जायसवाल, किशोर नगराले और सब-इंस्पेक्टर प्रदीप अतुलकर ने प्रकरण की जांच कर न्यायालय में आरोपपत्र दायर किया. विशेष सरकारी वकील विजय कोल्हे ने कुल 21 गवाहों के बयान दर्ज करवाए. गवाहों ने शिबू और बिसेन को पहचान लिया. बचावपक्ष के वकील दीपक दीक्षित, रमेश रावलानी, चेतन ठाकुर, अहफाज कुरैशी और अवधेश केसरी ने गवाहों के बयानों की पुनर्जांच करवाई जिसमें कुछ गवाहों के बयानों में विसंगति पाई गई. इसका लाभ आरोपियों को मिला. मोका के मामले में सभी को बरी कर दिया गया, जबकि शिबू और बिसेन को डकैती के मामले में दोषी करार देते हुए 10 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई. आरोपी करीब 9 वर्षों से आरोपी जेल में बंद हैं. यह अवधि सजा से कम कर दी गई है.