नागपुर. पोक्सो कानून के तहत जिला सत्र न्यायालय के अतिरिक्त दिवानी न्यायालय ने 10 वर्ष की सजा और 11,000 रु. के जुर्माना की सजा सुनाई थी. अति. दिवानी न्यायाधीश के इस आदेश को चुनौती देते हुए अशोककुमार ठाकरे ने हाई कोर्ट में अपील दायर की गई जिस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश विनय जोशी ने सर्वप्रथम जुर्माना राशि जमा करने के बाद ही जमानत पर रिहाई के आदेश निचली अदालत को जारी किए. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. राजेन्द्र डागा और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील एआर चुटके ने पैरवी की. अभियोजन पक्ष के अनुसार धारा 376 (2)(i)(j) के तहत 10 वर्ष का कारावास सुनाया गया था. इसके अलावा धारा 506 बी के तहत एक वर्ष की अलग से सजा और 11,000 रु. का जुर्माना भी ठोका गया था.
पुख्ता तथ्यों पर हुआ है फैसला
अपील का पुरजोर विरोध करते हुए सरकारी पक्ष की ओर से बताया गया कि महिला के खिलाफ हुए इस अपराध का पूरे समाज पर असर पड़ा है. यहां तक कि पीड़िता के सबूत काफी पुख्ता हैं. पीड़िता की उम्र को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पुख्ता तथ्यों के आधार पर ही निचली अदालत द्वारा फैसला सुनाया गया जिससे इस अपील पर संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि निचली अदालत में रखे गए सबूत पर्याप्त नहीं रहे हैं. कानून की नजरों में ये सबूत याचिकाकर्ता को अपराधी साबित करने में सक्षम नहीं हैं. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत का मानना था कि पीड़िता की उम्र भले ही 15 वर्ष बताई जा रही हो लेकिन बचाव पक्ष की ओर से उम्र को लेकर आपत्ति जताई जा रही है.
दस्तावेजी सबूतों को किया नजरअंदाज
अधि. डागा ने कहा कि पीड़िता की उम्र को लेकर निचली अदालत में दस्तावेजी सबूत रखे गए थे किंतु इन्हें नजरअंदाज कर दिया गया. निचली अदालत में केवल मौखिक रूप से जन्म तारीख पर दिए गए बयान को स्वीकार किया गया. जिस समय एफआईआर दर्ज की गई, उस समय पीड़िता ने अपनी उम्र की जानकारी नहीं दी थी. यहां तक कि धारा 164 के तहत जिस समय बयान दर्ज किया गया, उस समय भी यह जानकारी दर्ज नहीं की गई. चूंकि उम्र का सीधा असर निचली अदालत के फैसले में रहा है. अत: इस संदर्भ में संज्ञान लिया जाना चाहिए. सुनवाई के दौरान मेडिकल ऑफिसर की रिपोर्ट पर भी अदालत का ध्यानाकर्षित किया गया जिसके बाद हाई कोर्ट ने इस अपील के फैसले तक निचली अदालत द्वारा सुनवाई गई सजा को स्थगित कर दिया.