Court approves sacking of 12 Manpa employees, High Court validates Munde's decision
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    नागपुर. इतवारी जीआरपी द्वारा 16 जून, 2016 को पकड़ी गई 23 वैगन सड़ी सुपारी के बाद बड़े पैमाने पर इसमें भ्रष्टाचार और आयात में घोटाले को लेकर उजागर मामले की जांच भले ही पुलिस प्रशासन अपने स्तर पर कर रहा हो लेकिन अब तक जांच में कोई भी ठोस और कारगर कार्रवाई नहीं होने का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता मेहबूब चिमथानवाला की ओर से हाई कोर्ट में फौजदारी जनहित याचिका दायर की गई.

    याचिका पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान अदालत मित्र आनंद परचुरे ने कहा कि सड़ी सुपारी का व्यापार लगातार किया जा रहा है. अदालत की ओर से दिए गए कुछ आदेशों के कारण पुलिस को कार्रवाई करने में कुछ परेशानी आ रही है. ऐसा माना जा रहा है कि केवल डीआरआई या सीबीआई ही कार्रवाई कर सकती है.

    अदालत मित्र की दलीलों के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल पानसरे ने कानून के दायरे में पुलिस को भी सड़ी सुपारी के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार होने का खुलासा किया. याचिकाकर्ता चिमथानवाला की ओर से अधि. रसपालसिंह रेणू और सीबीआई की ओर से अधि. मुग्धा चांदुरकर ने पैरवी की. 

    देश के भीतर न आए सड़ी सुपारी

    सुनवाई के दौरान अदालत मित्र परचुरे ने कहा कि जन स्वास्थ्य के लिए खतरा होने के बावजूद सड़ी सुपारी का आयात, बिक्री और सप्लाई धड़ल्ले से जारी है. अदालत द्वारा गत समय दिए गए आदेशों के चलते आरोपियों के खिलाफ फौजदारी कानून के तहत कार्रवाई करने में पुलिस को समस्या आ रही है. सुनवाई के बाद अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि याचिका पर सुनवाई के दौरान कुछ अंतरिम आदेश जारी किए गए थे जिसके अनुसार हाई कोर्ट में चल रहे मामले के अनुसार 4 मामलों की पूरी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी.

    इसके अलावा सड़ी सुपारी किसी भी माध्यम से देश के भीतर न आ पाए, इसे लेकर उचित उपाय करने के आदेश भी दिए गए थे. हालांकि अधिकारी इसका ध्यान तो रख रहे हैं किंतु यदि कोई नई अवैध गतिविधि पाई जाती है तो ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई कर मामले दर्ज कर जांच करना जरूरी है. इसके लिए कोर्ट की ओर से कभी भी पाबंदी नहीं लगाई गई है.

    सभी को दें CBI की गोपनीय रिपोर्ट

    अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि मानव के सेवन के लिए खतरा सड़ी सुपारी के आयात और उसके उपयोग में लिप्त लोगों के खिलाफ फौजदारी मामला दर्ज करने के पुलिस को अधिकार हैं. हालांकि पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों को लेब्रोरेटरी या पब्लिक एनेलिस्ट की ओर से मुहर लगाई जानी चाहिए. सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से मामले में चल रही जांच की रिपोर्ट पेश की गई.

    बंद लिफाफे में रिपोर्ट होने के कारण इसकी प्रति उपलब्ध कराने की मांग याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. रेणू ने की. सीबीआई की ओर से इसे गोपनीय रिपोर्ट करार देकर सार्वजनिक करने का विरोध किया गया किंतु अदालत ने प्रतिवादियों सहित सभी को रिपोर्ट देने के आदेश दिए.