Nagpur District Court

  • सघन जांच अभी भी बाकी : सरकारी पक्ष

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नागपुर. स्टेशनरी घोटाले को लेकर एक ओर जहां मनपा की समिति द्वारा कार्यवाही की जा रही है, वहीं दूसरी ओर घोटाले में गिरफ्तार ठेकेदार और कर्मचारियों द्वारा जमानत के लिए जिला सत्र न्यायालय में दायर अर्जी पर सुनवाई की जा रही है. सोमवार को जिला सत्र न्यायाधीश पाटिल के समक्ष हुई सुनवाई के बाद अदालत ने सुनवाई खत्म होने के संकेत देते हुए मंगलवार को जमानत पर फैसला दिए जाने की जानकारी दोनों पक्षों को दी.

सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे सरकारी वकील प्रशांत साखरे ने कहा कि मामला काफी जटिल है. अब तक हुई जांच के अनुसार अब उच्च अधिकारियों की कार्यप्रणाली तथा टेंडर जारी होने के बाद से बिल के भुगतान तक की पूरी प्रक्रिया उजागर होनी है. इसके अलावा कुछ फाइलें भी जब्त करना बाकी है. अभियुक्तों को जमानत देने पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ होने की संभावना जताई गई. 

निर्धारित है भुगतान की प्रक्रिया

घोटाले में गिरफ्तार मोहन पडवंशी की ओर से पैरवी कर रहे अधि. प्रकाश नायडू ने सरकारी पक्ष की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि सरकारी पक्ष की दलीलें विरोधाभासी हैं. इसके पूर्व सरकारी पक्ष ने बताया था कि सामान्य प्रशासन विभाग के सहायक आयुक्त की मंजूरी से बिल की प्रक्रिया पूरी की गई, जबकि अब बिल मंजूरी में पडवंशी की क्या भूमिका है? इसकी छानबीन की आवश्यकता बताई जा रही है. सुनवाई के दौरान अदालत ने भुगतान की प्रक्रिया पर सरकारी पक्ष से जवाब मांगा किंतु जवाब नहीं मिलने पर अधि. नायडू ने कहा कि भुगतान की प्रक्रिया निर्धारित है. ई-गवर्नेन्स के दौरान जो दस्तावेज अपलोड करने होते हैं, उनके साथ बिल की हार्ड कापी देना होता है. ई-गवर्नेन्स की प्रक्रिया के अनुसार बिल की प्रक्रिया करने के बाद संबंधित विभाग के प्रमुखों को इसकी सूचना भी जाती है.

डॉ. चिलकर की आईडी नहीं होने से GAD से प्रक्रिया

सोमवार को सुनवाई के दौरान अधि. प्रशांत साखरे ने कहा कि बिल का भुगतान स्वास्थ्य विभाग को हुई स्टेशनरी की सप्लाई के आधार पर हुआ है. इसके अनुसार बिल की प्रक्रिया स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से होनी थी किंतु यह प्रक्रिया सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से की गई. इसकी छानबीन होनी जरूरी है. इस संदर्भ में अधि. नायडू का मानना था कि स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख डॉ. संजय चिलकर की आईडी ही नहीं थी जिससे ई-गवर्नेन्स की पूरी प्रक्रिया सामान्य प्रशासन विभाग से की गई. प्रक्रिया पर भले ही सवाल उठाए जा रहे हों लेकिन इसमें अभियुक्तों की लिप्तता क्या है, यह सरकारी पक्ष की ओर से उजागर नहीं की जा रही है. दोनों पक्षों की दलीलों के बाद अदालत ने सुनवाई खत्म कर फैसला सुरक्षित रख लिया.