NEET Controversy
File Pic

    Loading

    नागपुर. सितंबर 2021 से जिला अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र पड़ताल समिति के पास छात्रों से जुड़े दर्जनों मामले लंबित पड़े हैं. इस वजह से सैकड़ों अनुसूचित माना जनजाति विद्यार्थी शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित होने के साथ ही शिक्षा से भी वंचित हो रहे हैं. पिछले वर्ष राज्य सामायिक प्रवेश परीक्षा (सीईटी) उत्तीर्ण करने के बाद भी जाति प्रमाणपत्र के वैधता प्रस्ताव पारित नहीं हुये हैं. पात्र होने के बाद भी छात्र प्रवेश नहीं ले सके. जिले में करीब 265 विद्यार्थी हैं जिन्हें अब तक वैधता प्रमाणपत्र की प्रतीक्षा है. 

    आरक्षित वर्ग के छात्रों को प्रवेश के दौरान शासकीय योजना का लाभ लेने के लिए कास्ट वेलेडिटी जोड़ना पड़ता है. वेलिडिटी नहीं होने पर छात्रों को छात्रवृत्ति सहित अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकता. महाराष्ट्र शासन के अनुसूचित जनजाति सूची में माना जनजाति का उल्लेख क्रमांक 18 पर है. उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर समाज के कल्याण के लिए निर्णय दिये हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार माना अनुसूचित जनजाति विद्यार्थियों को जाति वैधता प्रमाणपत्र से वंचित नहीं रखा जा सकता. इसके बावजूद अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र पड़ताल समिति के पास प्रकरण लंबित होने की जानकारी छात्रों ने दी.

    विदर्भ के छात्रों के साथ अन्याय

    माना समाज केवल विदर्भ में ही है. वहीं नागपुर विभाग में सर्वाधिक है. उर्वरित महाराष्ट्र में माना समाज के लोग   रोजगार व अन्य कामों के लिए गये हैं. यही वजह है कि समाज को मूल विभाग में ही माना जाता है. विभाग से ही समाज के छात्रों की वेलिडिटी के मामले निपटाये जाते हैं लेकिन प्रशासकीय लेटलतीफी की वजह से छात्र उच्च शिक्षा से वंचित हो रहे हैं.

    छात्रों का आरोप है कि विदर्भ के छात्रों पर जानबूझकर अन्याय किया जाता है. पड़ताल समिति द्वारा केवल कामकाज दिखाने के लिए प्रकरणों की सुनवाई किये जाने की बात आदिवासी माना समाज समिति के संयोजक एड. नारायण जांभुले ने किया. उन्होंने कहा कि समिति के अधिकारी जानबूझकर मामलों को अटकाने का प्रयास करते हैं. दोषी अधिकारियों की जांच कर महाराष्ट्र नागरी सेवा नियमानुसार अनुशासनहीनता की कार्यवाही की जानी चाहिए.