
नागपुर. केंद्र की पहल पर नागपुर में एम्स की स्थापना की गई. ऑरेंज सिटी के लिए ये ‘अच्छे दिन’ हैं. हालांकि सरकार अभी भी एशिया के प्रतिष्ठित मेडिकल-सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को अपग्रेड करने के लिए इच्छुक नहीं है. 380 बेड की योजना थी लेकिन 30 वर्ष बाद भी इसे घटाकर 230 बेड कर दिया गया है.
यह घोषणा की गई थी कि ‘सुपर’ में 7 से 8 सुपर स्पेशलिटी पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे, जो मध्य भारत के लिए गौरव की बात थी लेकिन केवल 2 विषयों में डीएम पाठ्यक्रम है. सेवानिवृत्ति के बाद भर्ती नहीं हो रही है. दूसरी ओर यहां डॉक्टरों का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की ओर रुझान है. ऐसे में 30 वर्ष बाद भी सुपर अस्पताल अधूरा लगता है.
सुपर अति गरीबों के लिए वरदान है लेकिन यहां सेवाएं बंद की जा रही हैं. यहां हर दिन ओपीडी में 1,000 मरीजों का इलाज किया जाता है. भीड़ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है लेकिन सरकार सुपर स्पेशलिटी का दर्जा बढ़ाने के लिए कोई प्रयास करती नहीं दिख रही है. हाल ही में विशेष कार्य अधिकारी और पैथोलॉजी विभाग के हेड डॉ. संजय पराटे सेवानिवृत्त हो गए. नेफ्रोलॉजी विभाग में डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को स्वीकार किया गया.
न्यूरो फिजिशियन डॉ. संजय रामटेके और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. सुनील अंबुलकर की सेवा प्रशासन ने ही समाप्त कर दी. चूंकि सुपर के पास वर्तमान में कोई विशेष कार्य अधिकारी नहीं हैं, इसलिए डॉ. वंदना अग्रवाल के पास इसका कार्यभार है लेकिन वे छुट्टी पर हैं. इसके चलते फिलहाल जिम्मेदारी अधिष्ठाता के पास है.
सुपर में आने वाले मरीज
-2.5 लाख मरीज बाह्य रोगी विभाग में पंजीकृत.
-एक लाख से अधिक रक्त के साथ अन्य परीक्षण.
– डेढ़ हजार एक्स-रे.
-500 सीटी स्कैन.
सुपर में नहीं हैं
-विशेष कार्य अधिकारी
-किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट बंद
-न्यूरो फिजिशियन
-एंडोक्रिनोलॉजिस्ट
-एसोसिएट प्रोफेसर को असाइनमेंट
-सुपर का कैथलैब समाप्त हो गया