नागपुर. विकास शुल्क वसूलने के बावजूद क्षेत्र का विकास नहीं किए जाने को लेकर हाई कोर्ट में सैकड़ों पीड़ितों की ओर से याचिका दायर की गई. जिस पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल पानसरे ने याचिका में कुछ सुधार करने की स्वतंत्रता प्रदान की. साथ ही याचिका में सुधार के साथ ही मनपा और अन्य को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब दायर करने के आदेश भी दिए.
उल्लेखनीय है कि लगभग 400 याचिकाकर्ताओं की ओर से हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं जिसमें एक याचिकाकर्ता मेसर्स शिव साईं डेवलपर्स ने याचिका में बताया कि विकास शुल्क के नाम पर मनपा द्वारा उनसे 65 लाख रु. की निधि वसूली गई किंतु अब तक विकास नहीं किया गया. इसके लिए ज्ञापन दिए जाने पर राज्य सरकार से विकास निधि प्राप्त होने के बाद विकास करने की वकालत की जा रही है जिससे प्रतिवादी पक्ष को उचित आदेश देने का अनुरोध अदालत से किया गया.
आपत्ति निवारण के लिए रखी गई थीं एक साथ याचिकाएं
याचिकाओं में तकनीकी खामियां होने का हवाला देकर सर्वप्रथम इनका निवारण करने के लिए हाई कोर्ट के समक्ष 400 मामलों को एक साथ रखा गया था. इस पर याचिकाकर्तांओं के वकील का मानना था कि कुछ याचिकाओं पर कार्यालय की ओर से आपत्ति जताई गई है किंतु बारीकी से देखा गया तो इनमें किसी तरह की आपत्ति नहीं है. अदालत का मानना था कि इस तरह से यदि सर्वप्रथम कार्यालय की आपत्ति का निवारण करने के आदेश दिए गए तो बेवजह याचिकाएं खारिज भी हो सकती हैं. इस तरह से याचिकाकर्ताओं पर अन्याय हो सकता है. कुछ याचिकाओं में रबर स्टैंप पेज के ऊपरी स्तर पर लगाया गया है. भले ही यह उचित न हो लेकिन इसका कार्यालय द्वारा ही निराकरण किया जा सकता है.
कार्यालय संज्ञान लेकर करें निवारण
जुडिशियल रजिस्ट्रार को आदेश देते हुए अदालत ने कहा कि कुछ आपत्तियों पर कार्यालय ही निर्णय ले सकता है. अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि इस तरह की आपत्तियों को लेकर कार्यालय को समझाने के लिए यदि बार को स्वतंत्रता दी जाए, तो कई समस्याएं हल हो सकती है. किंतु ऐसा संभव नहीं है. इसी के साथ यह भी वास्तविकता है कि कई आपत्तियां वैध होती है. प्रत्येक मामले में सटिक न्याय व्यवस्था के लिए इन आपत्तियों का निवारण अनिवार्य होता है. अत: संबंधित याचिकाओं के वकीलों को रजिस्ट्रार के पास अपना पक्ष रखने की स्वतंत्रता भी प्रदान की.