- परिवार का नहीं कर पा रहे पालन-पोषण
नागपुर. कोरोना के संकटकाल में लाकडाऊन के बाद अब अनलाक की घोषणा के अनुसार सिटी का कारोबार पटरी पर आ रहा है. अनलाक में स्कूलों के संदर्भ में कोई भी निर्णय नहीं होने के कारण अब स्कूल वाहन चालकों को परिवार का पालन-पोषण करना भी मुश्किल हो रहा है. तमाम तरह की परेशानियां और सरकार की ओर से कोई भी निर्णय नहीं लिए जाने से क्या स्कूल वाहन चालक आत्महत्य करें. इस संदर्भ में बीजेपी के परिवहन समिति के नितिन पात्रिकर ने तुरंत चालकों को राहत देने की मांग की. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही है. नियमों का पालन कर स्थिति को सामान्य करने का प्रयास भी किया जा रहा है. लेकिन स्कूल वैन, स्कूल बस और स्कूल आटो का व्यवसाय शुरू होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं.
मुख्यमंत्री से लेकर सभी को ज्ञापन
उन्होंने कहा कि सिटी में कोरोना की शुरूआत का सर्वप्रथम शिकार स्कूल वाहन चालक हुआ है. लाकडाऊन की घोषणा के पहले ही स्कूल बंद हो जाने के बाद से चालक पूरी तरह बेरोजगार हो गए. अब सभी व्यापार शुरू होने के बाद भी स्कूल वाहन व्यवसाय शुरू नहीं हो पाया है. अनेक स्कूल वाहन चालकों पर कर्ज पर लिए गए वाहनों की अदायगी का भी बोझ है. हालांकि सरकार ने इसमें कुछ हद तक राहत तो दी, लेकिन इसका भुगतान करना ही पडेगा. इसी तरह चालकों पर बच्चों के शिक्षा, घर का किराया आदि के वहन की जिम्मेदारी का बोझ बना हुआ है. इस तरह की कई समस्याओं को लेकर अलग-अलग संगठनों के माध्यम से मुख्यमंत्री से लेकर पालकमंत्री और जिलाधिकारी को भी ज्ञापन दिया गया. किंतु अबतक स्कूल वाहन चालक नजरअंदाज ही रहा है.
10 हजार रु. प्रतिमाह दें आर्थिक मदद
उन्होंने कहा कि जिन वाहन चालकों ने सरकारी बैंकों से कर्ज लिया, उन्हें तो राहत मिली हुई है, लेकिन निजी वित्तिय संस्थाओं की ओर से किसी तरह की छूट नहीं दी जा रही है. समय पर कर्ज के हफ्ते की अदायगी नहीं करने पर वाहन जब्त करने की धमकियां दी जा रही है. उन्होंने कहा कि स्कूल वैन चालक वाहन कर , इन्शुरेन्स आदि के रूप में हर वर्ष 25 से 40 हजार तक सरकारी तिजोरी में जमा करता है. वर्तमान में उस पर 2 वक्त का भोजन जुटाने के लिए विपदा आई है. इस तरह की दयनिय स्थिति को देखते हुए स्कूल वाहन टैक्स, इंश्युरेन्स, फिटनेस प्रमाणपत्र को अगले वर्ष तक बरकरार रखने तथा स्कूली परिवहन व्यवस्था पटरी पर आने तक प्रतिमाह प्रत्येक चालक को 10 हजार रु. की आर्थिक मदद देने की मांग भी उन्होंने की.