(प्रतीकात्मक तस्वीर)
(प्रतीकात्मक तस्वीर)

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    नागपुर. किसी भी संकट की घड़ी में यदि इंसान को सबसे पहले किसी की याद आती है तो वह है पुलिस. चाहे मारपीट दंगे हो या प्राकृतिक आपदा. कहीं ट्रैफिक जाम हो या एक्सीडेंट. हर इंसान सबसे पहले 100 और 112 नंबर डायल करता है. सबसे पहले मदद के लिए पहुंचने वाली भी पुलिस ही होती है लेकिन कोई यह नहीं समझ पाता कि पुलिस पर काम का कितना बोझ होता है.

    वर्तमान समय में शहर में 1,300 पुलिसकर्मियों की कमी है. इस स्थिति में भी पुलिस पूरी ताकत के साथ काम कर रही है. ड्यूटी के घंटे तक केवल नाम के होते हैं. एक पुलिसकर्मी अपने घर से निकलने के बाद वापस कब लौटेगा वह खुद नहीं जानता. अचानक साहब ने कॉल किया और सवारी चल पड़ी.

    मनुष्यबल की कमी के साथ पुलिस कैसे शहर की यातायात व्यवस्था संभालेगी. कैसे शहर में लॉ एंड ऑर्डर बना रहेगा. हर समय शासन और प्रशासन को पुलिस विभाग से अपेक्षा होती है लेकिन सच तो यह है कि यह विभाग ही उपेक्षा का शिकार होता रहा है. ऐसे में वर्ष 2019 और 2020 में महाराष्ट्र पुलिस भर्ती ही नहीं हो पाई. पूरे राज्य में इसका परिणाम हुआ है. इन 2 वर्षों का बैकलॉग अब भरा जा रहा है. पुलिस भर्ती दोबारा शुरू की गई है लेकिन सही मायने में इस वर्ष तय किए गए पदों से 4 गुना मनुष्यबल की जरूरत पुलिस विभाग को है. 

    ग्रामीण भाग भी शहर में समाविष्ट 

    हाल ही में वर्ष 2019 की पुलिस भर्ती प्रक्रिया हुई. नागपुर शहर 271 पदों के लिए भर्ती ली गई. जबकि रिक्त पद 1,300 के करीब से ज्यादा है. एक साथ इतने पद भरना संभव भी नहीं है लेकिन एक चौथाई पद भरने से समस्या हल भी नहीं होने वाली. शहर की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में कामठी और हिंगना भी शहर आयुक्तालय के अधीन आ गए. वर्धा रोड पर जामठा तक और जबलपुर रोड पर कन्हान पुलिया तक घनी आबादी वाले इलाके शहर में है. ऐसे में अर्पायप्त पुलिस बल के साथ कानून व्यवस्था बनाए रखना कैसे संभव है. 

    ट्रैफिक विभाग लाचार 

    लॉ एंड ऑर्डर तो नागपुर पुलिस पहले भी पूरी ताकत से बनाए रखी है लेकिन वर्तमान समय में शहर की सबसे बड़ी समस्या यातायात की है. यातायात व्यवस्था को संभालना विभाग के लिए मुश्किल होता जा रहा है. शहर के कई इलाकों में रोजाना जाम जैसी स्थिति रहती है. ऐसे में ट्रैफिक मैनेजमेंट पुलिस के लिए सिरदर्द बन जाता है. ट्रैफिक विभाग में मनुष्यबल की कमी होने से हालात ज्यादा बिगड़ते जा रहे है. आए दिन शहर में किसी न किसी वीआईपी की आवाजाही होती है. ऐसे में उनके लिए मार्ग खुले रखना यातायात पुलिस की जिम्मेदारी रहती है. बड़ी संख्या में स्टाफ वहीं लग जाता है. ऐसे में विभाग भी लाचार है.

    थानों में भी स्टाफ की कमी

    केवल यातायात विभाग ही नहीं पुलिस थानों में भी स्टाफ की कमी है. शहरी सीमा तो बढ़ती जा रही है लेकिन उसकी तुलना में मनुष्यबल नहीं बढ़ रहा है. शहर के कई नेता अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में पुलिस थाने बनाने की मांग तो करते है. उनके दबाव में नए पुलिस थानों को मंजूरी भी मिल जाती है लेकिन इन थानों में स्टाफ कहां से आएगा इसके बारे में कोई नहीं सोचता. ऐसे में अगल-बगल के पुलिस थानों के स्टाफ को ही काट-छांटकर नए पुलिस थानों में भेज दिया जाता है. बेलतरोड़ी, हुड़केश्वर, वाठोड़ा, पारडी, यशोधरानगर, बजाजनगर, शांतिनगर ऐसे कई उदाहरण है. व्यवस्था थाने की इमारत से नहीं, वहां उपलब्ध मनुष्यबल से सुधरती है लेकिन कोई करें तो क्या? ‘राजा बोले, दाढ़ी हाले’ जैसी स्थिति होती है.