नागपुर. जय श्रीराम अर्बन क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी में हुई वित्तीय धांधली को ऑडिट रिपोर्ट में उजागर होने के बाद दिनेश पेडगांवकर ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत न्याय दंडाधिकारी के पास अर्जी दायर की थी. इसके आधार पर 1 जुलाई 2019 को संस्था में वित्तीय धांधली के लिए धारा 409, 420, 467, 120 बी और एमपीआईडी की धारा 3 के तहत मामला दर्ज किया गया.
मामले में गिरफ्तारी होने की संभावना के चलते संस्था की संचालक अर्चना टेके की ओर से हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश रोहित देव ने ऑडिट रिपोर्ट में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं होने का हवाला देते हुए शर्तों पर जमानत प्रदान कर दी. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. आर.आर. राजकारने और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील नितिन रोडे ने पैरवी की.
बिना अनुमति देश न छोड़ें
अदालत ने जहां 16,000 रु. के निजी मुचलके पर जमानत प्रदान की, वहीं निचली अदालत में चल रही मामले की प्रत्येक सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने के आदेश भी दिए. किसी भी सबूत से छेड़छाड़ नहीं करने तथा निचली अदालत की अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ने की कड़ी शर्त भी लगाई गई. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. राजकारने ने कहा कि मामले को लेकर अभियोजन पक्ष की ओर से अब चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है. भारी भरकम चार्जशीट तो दायर की गई लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस आरोप तक नहीं लगाए गए हैं. केवल ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को इसमें आरोपी बनाया गया है.
अन्य कोई सबूत नहीं
अधि. राजकारने ने कहा कि ऑडिट रिपोर्ट के अलावा आरोपों को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है. इस मुद्दे को अभियोजन पक्ष की ओर से खारिज भी नहीं किया गया. सरकारी वकील ने कहा कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की बैठकों में याचिकाकर्ता की उपस्थिति और उसके हस्ताक्षर होने की पुष्टि हुई है. दोनों पक्षों की दलीलों पर अदालत ने कहा कि ऑडिट रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद मुख्य आरोप अध्यक्ष, मैनेजर और विट्ठल मेहर के खिलाफ है. याचिकाकर्ता के खिलाफ केवल सामूहिक जिम्मेदारी होने के बावजूद वित्तीय धांधली रोकने में विफलता के आरोप है. केवल संचालक होने से कथित अपराध में शामिल नहीं किया जा सकता है.