RTMNU, nagpur University

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    नागपुर. आरटीएम नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा संचालित तीन कॉलेजों और करीब 38 स्नातकोत्तर विभागों में छात्रों की संख्या दिनों दिन घटती जा रही है. कुछ विभागों को छोड़ दिया जाये तो बाकी जगह वर्ष भर टेबल-कुर्सियां खाली रहती हैं. हालांकि पिछले दिनों विवि ने सभी स्नातकोत्तर विभागों को स्वायत्तता का दर्जा दे दिया है, इसके बावजूद छात्रों का आकर्षण नहीं बढ़ सका.

    इस बार विवि ने स्नातकोत्तर विभाग में प्रवेश के लिए प्री-एंट्रेंस एग्जाम (पीईई) करने का निर्णय लिया है. व्यवस्था में पारदर्शिता लाने और मेरिट को अवसर मिलने के लिए यह व्यवस्था लागू की गई लेकिन इससे कुछ बेहतर होता दिखाई नहीं दे रहा है. 7 अगस्त तक पंजीयन के अंतिम दिन तक 2600 सीटों के लिए 1800 आवेदन प्राप्त हुये.

    वहीं अकेले ह्यूमिनिटी की 2200 सीटों के लिए मात्र 700 आवेदन आये. आवेदन कम आने की वजह से विवि को तिथि बढ़ानी बढ़ी. कुछ ही विभाग ऐसे हैं जहां प्रवेश की ‘हाउसफुल’ जैसी स्थिति बनी रहती है. इनमें फिजिक्स, केमेस्ट्री, बायोकेमेस्ट्री, मैथ्स, कम्प्यूटर साइंस  विभागों का समावेश है. इनमें करीब 400 सीटों के लिए अंतिम तिथि तक 1100 से अधिक आवेदन मिले. अब जब तिथि बढ़ाई गई है तो और भी आवेदन मिलने की उम्मीद है.

    जो अच्छा, वहां भीड़

    इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि जिन विभागों में सीटों की तुलना में आवेदनों की भरमार लगी है, उनकी क्वालिटी बेहतरीन है. ह्यूमिनिटी के अंतर्गत आने वाले जनसंवाद विभाग, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, लोक प्रशासन, यात्रा एवं पर्यटन, प्राचीन इतिहास, पंचायत राज लोकप्रशासन, हिंदी, मराठी, संस्कृत आदि विभागों के लिए छात्रों की प्रतीक्षा करना पड़ती है. कुछ विभागों में तो 10-15 से अधिक प्रवेश नहीं होते जबकि क्षमता 60 से अधिक होती है. यही स्थिति वर्षों से बनी हुई है. हालांकि इस बार विवि ने अपने सभी विभागों को स्वायत्तता का दर्जा देने के साथ ही नई शिक्षा भी लागू कर दी है. इसके बावजूद छात्रों को आकर्षण करने में विवि प्रशासन नाकाम रहा.

    अध्यापन नीरस, पुराने ढर्रे पर चल रहे

    कुछ विभागों में अध्ययन की क्वालिटी बेहतरीन है. कुछ विभाग तो केवल अंशकालीन प्राध्यापकों के भरोसे चलाए जा रहे हैं. प्रैक्टिकल जैसे विषय भी ब्लैक बोर्ड पर पढ़ाये जाते हैं. इतना ही नहीं, विवि प्रशासन और प्राध्यापकों की ओर से भी कभी पूर्व क्षमता भरने के लिए प्रयास नहीं किये गए जबकि विभागों में प्राइवेट कॉलेजों की तुलना में फीस कम है. साथ ही लाइब्रेरी सहित ऑनलाइन सुविधाएं भी उपलब्ध हैं. इसे विवि की नाकामी ही कहा जाएगा कि जहां सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के लिए वेतन, सुविधा, साधन पर करोड़ों की रकम खर्च की जा रही है वहीं सीटें खाली रह जाती हैं.