maharashtra vidhansabha

    Loading

    नागपुर. विदर्भ राज्य पार्टी ने आरोप लगाया है कि पश्चिम महाराष्ट्र के नेता विदर्भ के साथ द्वेष रखते हैं, यह एक बार फिर साबित हो गया है. उस पर भी दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि विदर्भ के 62 विधायक होने के बाद भी उनमें एकता नहीं है और वे विदर्भ पर अन्याय करने वालों के खिलाफ मुंह खोलने में असमर्थ हैं. एक बार फिर मुख्यमंत्री के ऑपरेशन का कारण बताकर नागपुर में शीत सत्र का आयोजन रद्द करने के निर्णय पर विदर्भवादियों में रोष देखा जा रहा है.

    हाल ही गठित विदर्भ राज्य पार्टी के अध्यक्ष अरुण केदार ने कहा कि लगातार दूसरे वर्ष कोरोना की संभावित तीसरी लहर और सीएम के ऑपरेशन का कारण बताकर उपराजधानी से शीत सत्र को मुंबई ले गए. विदर्भ में सत्र होने से यहां की जनता की समस्याओं पर चर्चा होती है. ऐसा लगता है कि मुंबइया सरकार ऐसा चाहती ही नहीं. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि मविआ सरकार ने इसलिए यहां से सत्र को रद्द किया क्योंकि उसे पता था विदर्भ की जनता विविध समस्याओं को लेकर उसे आड़े हाथ लेगी. 

    योजनाबद्ध तरीके से दिया धोखा

    केदार ने दावा किया कि नागपुर में शीतकालीन सत्र नहीं कराने की योजना मविआ नेताओं की पहले से ही थी. पहले विदर्भवादियों को शांत रखने के लिए 7 दिसंबर की तिथि घोषित की. उसके बाद यह कहा गया कि 22 दिसंबर से सत्र लिया जाएगा और उसके बाद सीधे रद्द ही कर दिया गया. यह रवैया दुर्भाग्यपूर्ण और विदर्भवासियों पर अन्याय है.

    नागपुर करार का उल्लंघन किया जा रहा है. उससे भी गंभीर बात यह है कि पृथक विदर्भ का नाम पर राजनीति कर चुनाव जीतने वाले विधायक भी चुप्पी साधे हुए हैं जिनमें विपक्ष के नेता का भी समावेश है. विदर्भ राज्य पार्टी के विष्णु आष्टीकर, रंजना मामर्डे, मुकेश मासुरकर, सुयोग निलदावार, गुलाबराव धांडे, अरुण मुनघाटे, कृष्णा भोंगाडे, सुदाम राठौड़, मारोतराव बोथले, तात्यासाहब कहा कि अगर यहां से न्याय नहीं कर सकते तो पृथक विदर्भ राज्य बनाया जाए.