
विदर्भ में कोयला है। निश्चित रूप से पावर प्लांट आएंगे। पावर प्लांट आने से निवेश और रोजगार का लाभ है तो कई दुष्परिणाम भी भुगताने होते हैं। खासकर पर्यावरण, स्वास्थ्य को लेकर। बहस यहीं छिड़ जाती है। आखिर विदर्भ में कितने पावर प्लांट की जरूरत है। जरूरत है भी या नहीं। इस पर एमएसईटीसीएल के निदेशक विश्वास पाठक और पर्यावरण के लिए काम करने वाली सेंटर फार सस्टेनेबल डेवलपमेंट की लीना बुधे की राय।
देश की उन्नति के लिए पावर प्लांट अहम
जहां कोयला है वहीं पावर प्लांट लगाये जाते हैं। देश की उन्नति में पावर प्लांट के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है। खासकर तब जब देश 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है। देश में हर चीज के लिए बिजली लगनी ही लगनी है। बिजली के बिना न तो घर पर रहा जा सकता है और न ही फैक्टरी में मशीनें चल सकती हैं। कभी देश को 50 हजार मेगावाट बिजली लगती थी, आज 3 लाख मेगावाट लग रही है और आने वाले दिनों में 5 लाख मेगावाट बिजली लगेगी। इसलिए हर लिहाज से पावर प्लांट की जरूरत है। बिजली दर को नियंत्रित रखने के लिए भी अधिक से अधिक पावर प्लांट की जरूरत है। रही बात विदर्भ की तो कोयला यहां है। इसलिए प्लांट यहां लगाया जा रहा है। प्लांट आएगा तो निवेश आएगा। निवेशक आएंगे तो रोजगार का सृजन होगा और क्षेत्र विकसित होगा। सरकार सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट लगा रही है जिसमें प्रदूषण काफी कम होता है। इसके लिए एफजीडी तकनीक का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। इसलिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप बेबुनियाद हैं। हमें भी मालूम है कि पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बैठाना जरूरी है और हम उसके लिए भी कदम उठा ही रहे हैं। -विश्वास पाठक, (निदेशक-महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी)
विकास के नाम पर बिजली प्लांट प्रताड़ना
विकास के नाम पर विदर्भ के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। नागपुर वैश्विक प्रदूषित 102 शहरों की सूची में शामिल है। इसलिए अब पावर प्लांट की जरूरत नहीं है। विकास से हमें परहेज नहीं है लेकिन सरकार जो धोखा देती रहती है, वह हम नहीं चाहते। 2010 में सभी पावर प्लांट में एफजीडी सिस्टम लगाने की बात हुई थी। 13 वर्षों बाद भी इस पर अमल नहीं हुआ। अब सुपर क्रिटिकल यूनिट की बात कर रहे हैं लेकिन अब जनता को इस पर भरोसा नहीं है। ये जमीन, निवेश, रोजगार की बात करते हैं लेकिन कभी भी स्वास्थ्य, प्रदूषण के आर्थिक नुकसान की बात नहीं करते। पावर प्लांट के आसपास खेत, खलिहान, लोगों का जीवन नर्क बन गया है। गांव के गांव बर्बाद हो चुके हैं। यह प्रत्यक्ष परिणाम है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नोटिस पर नोटिस दे रहा है। ऐसे में नए प्लांट लगाने की बात करना बेमानी है। हमें स्वच्छ वायु, जल, जमीन चाहिए। गांवों के लोगों का बेहतर जीवन चाहिए। इस पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं है। रही बात कोराडी पावर प्लांट की तो यहां के लिए कोयला छत्तीसगढ़ से लाने की योजना है। ऐसे में प्लांट को पुणे, मुंबई, नाशिक में शिफ्ट किया जा सकता है पर इस पर सरकार मौन है। आज आयातित कोयले पर प्लांट चल रहे हैं। फिर विदर्भ पर अन्याय क्यों।- लीना बुधे (संस्थापक निदेशक- सेंटर फार सस्टेनेबल डेवलपमेंट)