Chhagan Bhujbal

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    नासिक : पिछड़े वर्ग के आरक्षण (Reservation) की 50 प्रतिशत (50 Percent) संवैधानिक सीमा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए छूट दी जा सकती है, ऐसे में मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) के लिए इस सीमा में ढील क्यों नहीं दी जा रही है, ऐसा सवाल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (Nationalist Congress Party) के वरिष्ठ नेता और राज्य के  पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal) ने उठाया है। भुजबल ने कहा है कि आर्थिक आरक्षण की वजह से अब आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा पार हो गई है, ऐसे में सवाल उठाए जा रहे हैं कि मराठा आरक्षण के मुद्दे को अधर में क्यों रखा गया है। भुजबल ने मांग की है कि आदिवासी बहुल स्थानीय स्वराज संस्थानों में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत और ओबीसी समुदाय को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। 

    नासिक शहर और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की जिला कार्यकारी समिति की बैठक विगत दिनों नाशिक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भवन में छगन भुजबल की उपस्थिति में हुई। इस बैठक में उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि छगन सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103 वें संविधान संशोधन को तीन से दो मतों से सही ठहराया है। 

    भुजबल ने कहा कि इतने बड़े तबके को आर्थिक आरक्षण से बाहर करना उचित नहीं है, जब कोर्ट के सामने कोई ब्योरा पेश नहीं किया जाता कि उन्हें बाहर रखना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि आरक्षण पिछड़े तत्वों को मुख्यधारा में लाने का एक सशक्त माध्यम है कि बहुसंख्यक सामाजिक रूप से पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर हैं और, उन्हें अदालत की ओर से अनुमोदित केंद्र सरकार के वित्तीय आरक्षण से बाहर रखा गया है। 

    ईडब्ल्यूएस आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा कर दिया गया है

    भुजबल ने कहा कि इस देश में ऊंच-नीच की सामाजिक व्यवस्था के पुनर्गठन के लिए संविधान की ओर से किए गए उपायों को भंग नहीं किया जाना चाहिए।  भुजबल ने कहा कि आरक्षण को सामाजिक न्याय के नजरिए से देखा जाना चाहिए। भुजबल ने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान में आरक्षण देते समय इसी उद्देश्य को ध्यान में रखा था। ईडब्ल्यूएस आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा कर दिया गया है। इसलिए, अगर सुप्रीम कोर्ट सामाजिक न्याय के लिए इस 50 प्रतिशत की सीमा को हटा देता है, तो इससे समाज के कई जरूरतमंद वर्गों को लाभ होगा। राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जनजातीय समुदाय को जनसंख्या के अनुपात में दिए जाने वाले आरक्षण के कारण कई स्थानों पर ओबीसी आरक्षण कम कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यदि 50 प्रतिशत की सीमा हटा दी जाती है तो ओबीसी घटक को भी आदिवासियों के वर्चस्व वाली स्थानीय स्वराज संस्थाओं में अपने अधिकारों का 27 प्रतिशत आरक्षण मिल जाएगा, इसी तरह कई वर्षों से लंबित मराठा समुदाय के आरक्षण का मामला भी समाप्त हो जाएगा।