Banks united against privatization, work stalled

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    नाशिक : सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के निजीकरण (Privatization) के खिलाफ बैंक कर्मचारी संगठनों (Bank employees Unions) ने दो दिनों के हड़ताल की घोषणा की है। जिसे देखते हुए गुरुवार 16 दिसंबर को गोल्फ क्लब मैदान (Golf Club ground) में जिले के बैंक कर्मचारियों (Bank Employees) ने केंद्र सरकार (Central Government) की पॉलिसी (Policy) का विरोध किया। लेकिन इस आंदोलन को परमिशन नहीं मिलने से आंदोलन करने का निर्णय वापस ले लिया गया। लेकिन आर्थिक कामकाज ठप रहा।

    बैंकों के निजीकरण के खिलाफ देशभर के 10 लाख बैंक कर्मचारियों ने 16 दिसंबर से 2 दिनों के हड़ताल  पर है। संसद के शीतकालीन सत्र में बैंकिंग नियमन कानून 1949 में संशोधन और दो सरकारी बैंकों का सरकारी हिस्सा उद्यमियों को बेचने के संदर्भ में बिल पेश किया जाएगा। इसके खिलाफ बैंकों ने हड़ताल किया है। वर्ष 2021-2022 के वित्त बजट में सरकारी व्यवस्था में उद्योगों से निवेश कराकर 1.75 हजार करोड़ रुपए जुटाने की घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की थी। इसी के तहत दो सरकारी बैंकों को बेचने की साजिश सरकार ने की है। सरकारी बैंक होने के बावजूद निजीकरण से आखिर किसे फायदा पहुंचाया जा रहा है। यह सवाल देश के नागरिकों और बैंक कर्मचारियों के सामने खड़ा हो गया है।

    वे सामाजिक हितों का विचार नहीं करते हैं

    सरकारी बैंक समाज के आखिरी छोड़ में बसे लोगों तक को अपनी सेवाएं देती है। प्राइवेट बैंक इन ग्रामीणों क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देने के इच्छुक नहीं हैं। इसलिए ग्रामीण विकास का भार सरकारी बैंक ही उठा रहे हैं। कोई भी सरकारी योजना हो जैसे जन-धन योजना, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, स्टैंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया हो या सरकार द्वारा की गई नोटबंदी हो, सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों पर आधारित है। प्राइवेट बैंक केवल नफे को ध्यान में रखकर काम करती है। वे सामाजिक हितों का विचार नहीं करते हैं। अधिकांश प्राइवेट बैंकों की फीस अधिक होने की वजह से उससे जुड़ना आम नागरिकों के लिए संभव नहीं है।