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    नाशिक : आगामी नाशिक महानगरपालिका चुनाव (Nashik Municipal Corporation Elections) की पार्श्वभूमी पर संगठनात्मक बदलाव करने के बजाए भाजपा (BJP) ने सत्ता विकेन्द्रीकरण (Decentralize Power) करने का निर्णय लिया। विकेन्द्रीकरण करते समय चुनाव के लिए मध्यवर्ती कार्यालय में निर्णय का अधिकार न रखते हुए विभागीय स्तर पर समिति नियुक्त की गई है। इसके चलते शहराध्यक्ष गिरीश पालवे सहित नाशिक प्रभारी विधायक जयकुमार रावल को बड़ा झटका लगा। फरवरी 2022 में नाशिक महानगरपालिका का चुनाव हो रहा है, जिसकी तैयारी सभी राजनीतिक दलों ने शुरू कर दी है। भाजपा ने अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए जोरदार तैयारी की जा रही है।

    विकास कार्य के दम पर मतदाताओं को आकर्षित करने की व्यूहरचना बनाई जा रही है। तो संगठनात्मक स्तर पर भाजप में ‘हे राम’ कहने की नौबत आई है। चुनाव की शुरुआत में पार्टी में अंतर्गत गुटबाजी तेज हो गई है, जिसका परिणाम चुनाव नतीजों पर न हो इसलिए चुनाव के बारे में निर्णय लेते समय अधिकारों का विक्रेंद्रीकरण किया गया है। यह निर्णय केवल शहराध्यक्ष पालवे पर होने वाले रोष के चलते लिया गया है। लेकिन चुनाव की पार्श्वभूमी पर संगठनात्मक बदलाव हुआ तो मतदाताओं तक गलत संदेश जाने के डर से अधिकारों का विकेंद्रीकरण किया गया, जिसे लेकर पार्टी कार्यालय वसंतस्मृती में एक बैठक हुई।

    इस समय नाशिक प्रभारी विधायक जयकुमार रावल, प्रदेश महासचिव विधायक देवयानी फरांदे, प्रदेश उपाध्यक्ष बालासाहब सानप, शहराध्यक्ष गिरीश पालवे, महापौर सतीश कुलकर्णी, विभागीय घटनामंत्री रवी अनासपुरे, विधायक सीमा हिरे, विधायक राहुल ढिकले, प्रदेश पैनेलिस्ट लक्ष्मण सावजी, विजय साने, उप महापौर भिकूबाई बागूल, संगठन महासचिव प्रशांत जाधव, पवन भगूरकर, सुनील केदार, जगन पाटिल आदि उपस्थित थे। अब इस निर्णय का सही मायने में कितना लाभ होगा है? यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा।

    शिवसेना में भी हुआ अधिकारों का विकेन्द्रीकरण

    शिवसेना में अंतर्गत गुटबाजी तेज होते ही नाशिक जिला संपर्क प्रमुख भाऊसाहब चौधरी, वरिष्ठ नेते वसंत गिते, दत्ता गायकवाड़, महानगरप्रमुख सुधाकर बडगुजर, महानगरपालिका के विपक्ष नेता अजय बोरस्ते, गटनेता विलास शिंदे आदि की समन्वय समिति गठित की गई। इसी तर्ज पर भाजपा ने भी विभागीय स्तर पर समिति गठित की है।