किसानों को कंपनियां दें मुफ्त में बीज

Loading

सोयाबीन बीज अंकुरित नहीं होने से चिंता में डूबे किसान

कृषि मंत्री भुसे ने दिया आदेश

मजदूर किसान यूनियन ने की क्षतिपूर्ति की मांग  

साक्री. सबसे पहले मराठवाड़ा के खेतों में की गई बुआई के बाद सोयाबीन के बीज अंकुरित नहीं होने की शिकायत आई है. अब पूरे प्रदेश से ऐसी शिकायत आ रही हैं. जिले के कई हिस्सों में सोयाबीन की फसल उगाई जाती है. यहां के किसानों का भी यही अनुभव रहा है. राज्य के कृषि मंत्री दादा भुसे ने शिकायतों का संज्ञान लेते हुए खेतों का निरीक्षण किया और किसानों को दूसरी बुआई के लिए मुफ्त में बीज उपलब्ध कराने के आदेश बीज कंपनियों और विक्रेताओं को दिए. मजदूर किसान संगठन के प्रदेश महासचिव कामरेड सुभाष काकुस्ते ने पहली बुआई व सभी लागतों पर आए खर्च की प्रतिपूर्ति किसानों को देने की मांग की है.

बिना जांच-परख के बाजार मे उतारा

 इस वर्ष समय पर बारिश हुई. विगत वर्ष 40 लाख हेक्टेयर पर सोयाबीन बोया गया था. इस वर्ष सोयाबीन की बुआई में वृद्धि की उम्मीद थी.परिणामस्वरूप इसी का लाभ उठाते हुए केवल व्यापारी हितों को देखते हुए पर्याप्त मानदंडों की जांच बगैर ही कंपनियों ने बाजारों में बीजों को बिक्री के लिए उतार दिया.

आनन-फानन में कर दी बुआई

बुआई का अवसर हाथ से निकल न जाए, इसलिए किसानों ने जल्दबाजी में जैसा बीज मिला उसकी बुआई कर दी. लेकिन अब शिकायत है कि बगैर अंकुरित ये बीज विफल हो गए. किसानों की मेहनत, मजदूरी, पैसा और समय की भी बर्बादी हो गई है. मौसम को वापस लाना तो असंभव है, ऐसी अपूरणीय हानि हो गई है. अब विफल सिद्ध हुए बीज के बदले में दूसरा बीज मुहैया कराये जाने का प्रस्ताव मंत्री दादा भुसे ने दिया है. 

जांच के लिए समिति गठित

इस घटना की जांच करने हेतु समिति का गठन किया गया है, पर उसका निर्णय क्या होगा? नुकसान तो हो गया, किसानों ने खेती की बुआई और उर्वरक पर खर्च किया, मजदूरी बांटी, घर के सभी सदस्य इसी काम में लगे हुए थे. अब दोबारा बुआई के लिए यही सब दोहराना होगा. क्योंकि दूसरी बुआई से अपेक्षित उपज होने की संभावना कम ही रहती है. नए से वितरित बीज फिर विफल रह सकता हैं. 

प्राकृतिक एवं इंसानी मार

‘विगत कुछ वर्षों में किसानों को प्राकृतिक और इन्सानी दोनों मार झेलनी पड़ रही है. ऐसे में उसको राहत मिलेगी, ऐसा ही कदम वर्तमान में उचित होगा. वरना टूटा हुआ किसान खेती नहीं कर पाएगा.

 -सुभाष काकुस्ते, मजदूर व किसान नेता