Dhananjay-Munde

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नासिक: राष्ट्रवादी कां‍ग्रेस पार्टी (एनसीपी) में बूथ रचना के मौके पर नासिक (Nashik) की कमान एनसीपी नेता धनंजय मुंडे (Dhananjay Munde) को सौंपी गई है, इसे दूसरे दर्जे के नेताओं को आगे लाने की रणनीति बताया जा रहा है। यह परिवर्तन वरिष्ठ नेता छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal) और बीजेपी की पंकजा मुंडे (Pankaja Munde) से धनंजय मुंडे के नेतृत्व में ओबीसी के नेतृत्व को स्थानांतरित करने के इरादे से किया गया हैं। 

इससे भुजबल की ओर से स्थापित समता परिषद में बेचैनी बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव दस महीने दूर है और संभावना है कि दीपावली के बाद स्थानीय स्वशासन के चुनाव भी हो जाएं, इसी को ध्यान में रखते हुए एनसीपी ने अभी से काम करना शुरू कर दिया है।

बूथ सशक्तिकरण का काम युवा नेताओं को 

शरद पवार के इस्तीफे के बाद बूथ सशक्तिकरण का काम युवा नेताओं को सौंपने का फैसला किया गया, इसलिए धनंजय मुंडे को जिम्मेदारी दी गई है। नासिक में स्व. गोपीनाथ मुंडे के समर्थकों ने भी पंकजा का समर्थन किया। हाल ही में पंकजा ने सिन्नर में गोपीनाथ गढ़ की स्थापना कर महान शक्ति का परिचय दिया था। कहा जा रहा है कि इसी को ध्यान में रखते हुए एनसीपी ने धनंजय मुंडे को प्रमोट करने के लिए नासिक को चुना है।

धनंजय को नासिक के रास्ते राज्य में ले जाना ही रणनीति

नासिक में एनसीपी के छह विधायक हैं और इनमें से पांच अजीत पवार के समर्थक माने जाते हैं। धनंजय मुंडे को अजीत पवार के करीबी के तौर पर भी जाना जाता है, दूसरी ओर भुजबल को ओबीसी के नेता के रूप में जाना जाता है और नासिक में समता परिषद की स्थापना की गई थी। समय के साथ यह संगठन राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया और इसके माध्यम से भुजबल ओबीसी के राष्ट्रीय नेता के रूप में चर्चा में रहे, इसलिए अगर मुंडे को भविष्य में ओबीसी नेता के तौर पर आगे लाना है, तो निजी तौर पर कहा जाता है कि उन्हें मराठवाड़ा से बाहर नासिक के रास्ते पूरे राज्य में ले जाना ही रणनीति है।

धनंजय को नासिक की जिम्मेदारी क्यों?

ओबीसी में वंजारी सबसे प्रभावशाली समुदाय है। धनंजय उनके नेता के रूप में चर्चा में हैं। पूर्व मंत्री पंकजा की समाज पर अभी-भी पकड़ है, अजीत पवार इसे कम करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ वर्ष पहले एनसीपी नेता और मुंब्रा के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने अपने पैतृक गांव सिन्नर के जरिए नासिक की राजनीति में आने की कोशिश की थी, इसे भविष्य के एबीसी नेतृत्व के लिए संघर्ष के रूप में देखा गया था। यह निष्कर्ष निकालना गलत है कि भुजबल ने नासिक में अपनी पकड़ खो दी है, फिर धनंजय मुंडे को नासिक की जिम्मेदारी क्यों दी गई बात समझ से परे हैं।