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    पिंपलगांव बसवंत: इस वर्ष शैक्षणिक सत्र सोमवार, 13 जून में शुरू हो रहा है। अब शहर के सभी स्कूलों की घंटियां फिर से बजने लगेंगी। कोरोना महामारी के दौर में लगातार दो वर्ष तक बच्चे स्कूल नहीं गए। अब कितने बच्चे स्कूल जाएंगे, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। इस शैक्षणिक वर्ष के दौरान शिक्षकों को सामाजिक संगठनों की मदद से शहर के विभिन्न हिस्सों, उपनगरों और झुग्गियों में रहने वाले बच्चों की तलाश करनी होगी। सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए समाज को आगे आना होगा।

    स्कूल न जाने वाले बच्चों को अपने स्कूल में ले जाने के लिए शिक्षक उत्सुक नजर नहीं आ रहे हैं। स्कूल और शिक्षक, शिक्षित और सुशिक्षित माता-पिता के बच्चों को प्रवेश देने के लिए बहुत उत्सुक हैं। अंतिम वर्ग को बाल शिक्षा की मुख्यधारा में आना चाहिए, इसके लिए सभी को सामूहिक प्रयास करना चाहिए।

    विपरीत परिस्थितियों में सफल लोग बन रहे रोल मॉडल

    कई पेशेवर और अधिकारी, जो आज समाज में विपरीत परिस्थितियों पर काबू पाकर जीवन के शीर्ष पर पहुंचे हैं, वे सम्मान के साथ दूसरों के सामने रोल मॉडल बन रहे हैं। यह एक वर्ष में किया जाना चाहिए। पिंपलगांव बसवंत में शहर के कई हिस्सों में बड़ी संख्या में वंचित, उपेक्षित बच्चे हैं। ये बच्चे भी गरीबी और खासकर अज्ञानता के कारण शिक्षा से वंचित हैं। बाल मजदूरी, भीख मांगने और बेटी को कम उम्र में ही बाल विवाह के लिए मजबूर कर दिया जाता है, ऐसे बच्चों का बचपन बर्बाद न हो। इसलिए सरकार की ओर से केवल कागजी घोड़े ही दौड़ाए जाते हैं। कई सरकारी फैसलों के बावजूद कार्रवाई शून्य है। स्कूल न जाने वाले बच्चों की वास्तविक संख्या को देखते हुए राज्य सरकार, पुलिस और शिक्षकों को समन्वय से इन बच्चों की शैक्षिक प्रगति के लिए पहल करनी चाहिए। मजदूरी के लिए गांव-गांव भटक रहे परिवारों के बच्चों का सर्वेक्षण नहीं किया जाता और ऐसे परिवारों के बच्चों को स्कूल से निकाल कर बाल श्रम की ओर खींचा जाता है।

    कोरोना में कई परिवार रोजगार की तलाश में अनिश्चितकाल के लिए पलायन कर गए हैं, जिससे उनके बच्चे स्कूल से बाहर हो गए। इसके लिए नवोन्मेषी गतिविधियों और विशिष्ट पाठ्यक्रमों को जोड़ा जा रहा है। ऐसे प्रवासी बच्चों को मूल गांव में या माता-पिता के कार्यस्थल पर शिक्षा के लिए अधिक से अधिक अस्थाई छात्रावास शुरू कर बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है।

    -अशोक शिंदे, स्कूल, संचालक प्राथमिक विद्यालय

    आरटीई एक्ट के तहत समुदाय के हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार है। यह सुनिश्चित करता है कि 6 से 14 वर्ष की आयु का कोई भी बच्चा स्कूल से बाहर न हो। अभिभावक संबंधित स्कूल के शिक्षकों से संपर्क कर अपने बच्चे को प्रवेश दिलाएं।

    -अर्जुन ताकाटे, शिक्षक, निफाड़

    जिला परिषद का शिक्षा विभाग नए शैक्षणिक वर्ष से अधिक से अधिक बच्चों को स्कूल स्ट्रीम में समायोजित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। मार्च-अप्रैल में जन्म लेने वाले सभी बच्चों का आयु वर्ग के आधार पर सर्वेक्षण किया जाता है। पात्र बच्चों की सूची तैयार की जा रही है। यदि कुछ बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं तो आंगनवाड़ी और स्कूल शिक्षकों से सर्वे कराकर उनकी उम्र के हिसाब से बच्चों को प्रवेश दिया जाता है।

    -राजीव महस्कर, शिक्षा अधिकारी, प्राथमिक विभाग, जिला परिषद, नाशिक