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    लासलगांव : केंद्र सरकार (Central Government) ने सोयाबीन पेंडीस (Soyabean Pandis) आयात की अनुमति दी थी। ऐसे में अब खाद्यतेल (Edible Oil) आयात शुल्क हटाने से सोयाबीन (Soyabean) के दाम (Price) गिर रहे है। लासलगांव कृषि उपज मंडी समिति में सोयाबीन को 7 हजार रुपए दाम मिल रहा था, लेकिन अब कम से कम 4 हजार, अधिक से अधिक 6552 तो औसत 6400 रुपए प्रति क्विंटल दाम मिल रहा है। इस तरह 700 रुपए से सोयाबीन के दाम गिर गए है। इसके चलते उत्पादक किसान चिंता में डूब गए है। पिछले साल सोयाबीन को 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल दाम मिलने से इस बार किसानों ने दाम बढ़ने की आस पर जल्द से जल्द सोयाबीन की बिक्री करने के बजाए चरण-चरण में बिक्री कर रहे है। इसके चलते मंडी में बड़े तौर पर सोयाबीन की आवक नहीं हुई। दरमियान रशिया और युक्रेन में तीन महीने तक युद्ध शुरू होने से इन दोनों देशों से सूर्यफूल और तेल की आयात नहीं हुई। इंडोनेशिया ने पाम तेल की निर्यात बंद की। इसके चलते खाद्य तेल के दाम बढ़ने से सोयाबीन के दाम भी तीन महीने 7 हजार से अधिक थे। हंगाम खत्म होने के बाद सोयाबीन के दाम बढ़ने की आस और खरीफ सत्र के लिए बीज और खाद की व्यवस्था करने के लिए किसानों ने सोयाबीन का भंडारण किया था। 

    दरमियान केंद्र सरकार ने सोयाबीन पेंडीस को आयात की अनुमति दी। साथ ही खाद्य तेल से आयात शुल्क हटा दिया। इसके चलते सोयाबीन के दाम गिरकर कम से कम 4 हजार तो अधिक से अधिक 6 हजार तक पहुंच गए है। केंद्र सरकार ने खाद्य तेल के दाम कम करने के लिए इंडोनेशिया को पाम तेल निर्यात की अनुमति दी। इसके चलते सोयाबीन के दाम 700 रुपए से गिर गए है। आगामी समय में सोयाबीन के दाम ऐसे ही होने की संभावना व्यापारियों ने व्यक्त करने से सोयाबीन का भंडारण करने वाले किसान चिंता में डूब गए है। 

    केंद्र सरकार की नीति से ही गिरे सोयाबीन के दाम

    सोयाबीन का हंगाम अंतिम चरण में है। इसलिए अधिक दाम मिलने की अपेक्षा किसानों को होती है। इसलिए अधिकतर किसान सोयाबीन का भंडारण करते है। परंतु केंद्र सरकार ने सोयाबीन तेल, सूर्यफूल तेल आयात कर टैक्स शुल्क माफ करने का निर्णय लेने से सोयाबीन के दाम दिन ब दिन कम हो रहे है। 10 हजार रुपए क्विंटल बिक्री होने वाली सोयाबीन आज 6 हजार तक पहुंच गई है। इसके चलते किसानों का नुकसान हो रहा है। केंद्र सरकार ने आयात-निर्यात नीति निश्चित करते समय किसानों की स्थिति के बारे में सोचना आवश्यक है। – (सचिन होलकर, कृषि विशेषज्ञ, लासलगांव)