NGO in US raises $ 950,000 for Indian school children
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शिक्षा संस्थानों से प्रशासन ले अनाज का हिसाब  

लाकडाउन से अभिभावकों की हालत खराब

मालेगांव. सरकार की ओर से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के विद्यार्थियों को रोज दिये जाने वाले मिड-डे मील का अनाज उन तक नहीं पहुंच रहा है. सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत सरकारी और गैर सरकारी अनुदानित विद्यालयों में रोज छात्रों की संख्या के अनुसार खिचड़ी या अन्य खाद्य पदार्थ खिलाया जाता था. शिक्षा संस्थान खाना बनाने वालों या बचत गट को ठेका देकर रोज खाना बनवाते और छात्रों को खिलाते थे. सर्व शिक्षा अभियान की ओर से हर माह स्कूलों को छात्रों की संख्या के अनुसार चावल या अन्य पदार्थ पूरे माह के लिये दिया जाता था. कोरोना विषाणु के चलते चल रहे लॉकडाउन के दिनों में जबकि 3 माह से स्कूलें बंद हैं, इस स्थिति में मिड-डे मील का अनाज जिले की सभी पंचायत समितियों के शिक्षा विभाग के अंतर्गत आने वाले सर्व शिक्षा अभियानों के गोडाउन में रखा है.

बच्चों के घरों पर अनाज पहुंचाने का आदेश

लॉकडाउन के दिनों में स्कूल बंद होने से छात्र अपने घरों पर ही हैं, ऐसे में राज्य सरकार ने इन कठिनाई के दिनों में छात्रों के हिस्से का अनाज उनके घरों तक पहुंचाने का आदेश दिया है. लेकिन इस आदेश का पालन करने वालों में केवल ग्रामीण भागों की जिला परिषद स्कूलें ही देखी गई हैं. शहरी भाग में आने वाले निजी अनुदानित स्कूलों में मिड-डे मील का अनाज छात्रों को आज तक नहीं दिया गया. शहर के एेसे इलाकों वाले स्कूलें जहां गरीब और मजदूर रहते हैं, उन स्कूलों ने घोषणा करके उन लोगों को अनाज दिया, जो वहां लेने के लिये पहुंचे. लेकिन जो नहीं पहुंचे उन छात्रों के घरों तक अनाज पहुंचाने के लिये कोई नहीं गया. 

वंचितों को अनाज देना अनिवार्य

ऐसी संस्थाओं को जल्द से जल्द छात्रों को 3 माह का उनके हिस्से का अनाज देना अनिवार्य है. मिड-डे मील के हिसाब से प्रति छात्र 150 ग्राम चावल की खिचड़ी दी जाती है. इस हिसाब से प्रति छात्र 20 दिनों का अनाज 3 किलो होता है. इस प्रकार 3 माह के लिये प्रति छात्र 9 किलो चावल दिया जाना चाहिये. लेकिन शहर के किसी भी विद्यालय में आदेश का पालन करते हुए छात्रों को अनाज नहीं दिया गया है. प्रशासन ऐसे स्कूलों से हिसाब लें कि उन्होंने प्रति माह कितना अनाज गोडाउन से निकाला है और कितना छात्रों में बांटा गया है.