The effect of Omicron is now on the farmers, the fall in the price of soybean

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    नाशिक : पिछले कुछ दिनों से सोयाबीन की कीमतों (Soybean Prices) में बढ़ोत्तरी हो रही थी या वे स्थिर थीं। लेकिन दो दिनों से बाजार की तस्वीर बदल गई है। दो दिनों में सोयाबीन की कीमतें 400 रुपए से नीचे आ गई हैं। कोमोडिटी मार्केट (Commodity Market) में रेट गिरने और कोरोना (Corona) के ओमीक्रोन वेरिएंट (Omicron Variants) के कारण निर्यात प्रभावित हुआ है। व्यापारियों का दावा है कि इसी वजह से कीमतों में भारी गिरावट दिखाई दे रही है। राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे इस परिणाम का असर नाशिक जिले की बाजार समितियों में भी साफ नजर आ रहा है। 

    दिवाली के बाद एक बार भी सोयाबीन की कीमतों में कमी नहीं आई थी। या तो कीमतें बढ़ रही थी या कीमतें स्थिर थीं। इससे किसानों को सोयाबीन का सही भाव मिल रहा था। लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अब अगर सोयाबीन की आवक और बढ़ी तो कीमतें और गिरने का डर है। 

    किसानों की चिंताएं बढ़ गई

    सोयाबीन की कीमतें बढ़ रही थीं तब आवक भी नियंत्रित थी। लेकिन सोमवार से स्थति में बदलाव आया. सोमवार और मंगलवार यानी लगातार दो दिनों तक 400 रुपए तक कीमतें गिर गईं। कारण चाहे कोमोडिटी मार्केट में रेट गिरना हो या ओमीक्रोन वेरिएंट के प्रभाव से निर्यात प्रभावित होने की वजह हो, किसानों की चिंताएं बढ़ गई हैं। एक महीने में डेढ़ हजार तक का भाव सोयाबीन का बढ़ गया था, जबकि दो दिनों में रेट 400 रुपए से नीचे गिर गया है।

    किसानों के लिए अब यही है सलाह 

    इस बार के मौसम में सोयाबीन की कीमतों का परिणाम आवक पर दिखाई नहीं दिया। कीमतें बढ़ रही थीं तो आवक कम थी। कीमतें कम हुईं तो आवक बढ़ी नहीं। सोयाबीन की बढ़ती कीमतों पर किसानों का भरोसा था। किसानों की उम्मीद है कि सोयाबीन की कीमत 10 हजार रुपए तक तो रहेगी ही रहेगी। लेकिन अब यह हो पाएगा कि नहीं, यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन बाजार में सोयाबीन की अधिकता है। इसलिए अधिक लालच में रुकने से अच्छा सोयाबीन की विक्री कर देने में ही भलाई है। व्यापारी अशोक अग्रवाल ने यह सलाह दी है।

    नाशिक कृषि बाजार समिति में सोयाबीन के बारे में आगे बाजार का रुख क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। फिलहाल तो अनपेक्षित परिणाम दिखाई दे रहा है। इसलिए किसानों को सही समय पर सही निर्णय ले लेना चाहिए। बाजार में सोयाबीन की अधिकता है। इसलिए किसानों को अपने माल की विक्री रोकनी नहीं चाहिए।