The unseasonal rain drove the ax on the vineyard, other crops would have to be cultivated to support the family

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    लासलगांव : यहां एक बागबान (Gardener) ने अपने अंगूर के बाग (Vineyard) में बेलों पर कुल्हाडी चला कर उन्हे नष्ट कर दिया। उसने बताया कि दो साल पहले, ‘मैंने अपने बगीचे को हिमस्खलन की चपेट में पाया। दो साल बाद कोरोना (Corona) के चलते गिरते पड़ते दामों में अंगूर (Grapes) बेचने पड़े। अब जाड़े के मौसम में बारिश हो रही है, बेलों में अंगूर के गुच्छे बनने लगे हैं लेकिन असहनीय ठंड, बरसात के खराब मौसम के कारण मैंने बेलें काटने का फैसला किया है।

    5 सालों में तक 7.5 लाख रुपये खर्च किए हैं और आय केवल 2 लाख रुपये है। परिवार का पेट भरने के लिए अंगर की बेलों के नुकसान के कारण हमें फसल बदलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यह मेरा दुर्भाग्य है कि मैं एक किसान परिवार में पैदा हुआ’? लासलगांव और उसके आसपास के इलाकों में बुधवार सुबह से ही बेमौसम बारिश हो रही है और हवा में भारी ओले पड़ गए हैं। जहां आम लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, वहीं असामयिक हमले से किसान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, सबसे ज्यादा नुकसान अंगूर उत्पादकों और प्याज उत्पादकों को हुआ है। enavabharat.com के प्रतिनिधि ने निफाड तालुका के ब्राह्मणगांव विंचूर में अंगूर उत्पादक रावसाहेब गवली के खेत को हुए नुकसान के बारे में पूछताछ की तो निराश शब्दों में बताया कि उसे अंगूर के बागों पर कुल्हाडी क्यों चलानी पड़ी।

    सोनाका अंगूर दो एकड़ जमीन में लगाए जाते हैं। 2018 में, मेरी बेलें गिरने की स्थिति में मिली, इसलिए मेरे हाथ की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई और मुझे उस वर्ष पूरा नुकसान उठाना पड़ा। पिछले दो साल से हर तरफ कोरोना का तूफान चल रहा है और इसका झटका हमारी अंगूर की फसल पर सबसे ज्यादा पड़ा है। पहले लॉकडाउन में अंगूरों को बहुत कम दामों में बेचा जाता था, लेकिन एैसी स्थिती भी आई के किसानों को अंगूर मुफ्त में बांटने पडे।

    ‘मैं बागों के लिए सबसे महंगी दवा का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन कभी असमानी संकट तो कभी सुल्तानी संकट मुझ पर आता रहा और इस बार भी वही हुआ। दो दिन की ठंड और भारी बारिश के कारण पूरा बाग खराब होने की स्थिती में है और आज मैंने अंगूर की बेलों को उखाड़ने का फैसला किया है। अब मैं एक एकड़ में दूसरी खेती करुंगा और उस अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए दूसरी फसल लगाऊंगा’। इस के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है, अंगूर पंढरी के नाम से मशहूर निफाड तहसील के कई अंगूर उत्पादक गवली जैसी ही स्थिति में हैं।