Bullockcart Race

    Loading

    पिंपरी:  महाराष्ट्र (Maharashtra) में पिछले कई सालों से बैलगाड़ी दौड़ (Bullockcart Race) पर लगे प्रतिबंध (Ban) को हटाने की की लड़ाई आखिरकार कामयाब हो गई है। बैलगाड़ी दौड़ को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सशर्त मंजूरी (Conditional Approval) दे दी है। यह जीत महाराष्ट्र के बलिराजा और सर्जा-राजा की, यानी किसान को जीवन देने वाले बैलों की। बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध के संबंध में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई हुई। यह सुनवाई न्यायमूर्ति खानविलकर के समक्ष हुई।  

    इस सुनवाई में राज्य सरकार के वरिष्ठ सलाहकार वकील मुकुल रोहतगी ने सरकार की ओर से दौड़ पर लगे प्रतिबंध को हटाने को लेकर जोरदार तर्क दिया। वहीं दौड़ प्रतिबंध के समर्थन में एड. अंतूरकर ने तर्क दिया। इसकी जानकारी अखिल भारतीय बैलगाड़ी मालिक संघ के राधाकृष्ण ताकलीकर ने दी। सरकार ने 15 जुलाई, 2011 के सर्कुलर के अनुसार, बैलों को जंगली जानवरों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।  नतीजतन, राज्य में बैलगाड़ी दौड़ पूरी तरह से बंद हो गई। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के किसानों के इस पसंदीदा बैलगाड़ी दौड़ को पुनः शुरू कराने और बैलों को जंगली जानवरों के वर्गीकरण से मुक्त करने के लिए बैलगाड़ी दौड़ प्रेमियों द्वारा संघर्ष शुरू किया गया।

    2017 में बनाया गया कानून

    कर्नाटक और तमिलनाडु समेत कई राज्यों में सांडों की लड़ाई में ढील दी गई है। सिर्फ महाराष्ट्र राज्य में ही बैलगाड़ी दौड़ पर बैन क्यों? यह सवाल बैलगाड़ी प्रेमी किसानों और ग्रामीणों द्वारा उठाया जाता रहा। इस बीच, महाराष्ट्र सरकार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पहल पर अप्रैल 2017 में बैलगाड़ी दौड़ की सशर्त शुरुआत पर एक कानून बनाया है।  हालांकि, कुछ बैलगाड़ी दौड़ विरोधियों द्वारा इस कानून को अदालत में चुनौती दी गई थी। मुंबई हाई कोर्ट द्वारा बैलगाड़ी दौड़ पर रोक लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर अंतिम सुनवाई हुई।

    SC ने दिया निर्णय

    पिंपरी-चिंचवड़ भाजपा के नगर अध्यक्ष और विधायक महेश लांडगे से मिली जानकारी के अनुसार, सर्वोच्च अदालत ने बैलगाड़ी प्रेमियों के पक्ष में फैसला सुनाया और सशर्त अनुमति के साथ बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति दी। एड. मुकुल रोहतगी ने बैलगाड़ी दौड़ के पक्ष में दलील देते हुए अदालत ने कर्नाटक और तमिलनाडु में चल रही बैलगाड़ियों की दौड़ की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बैल को संरक्षित जानवरों की सूची से बाहर रखा जाना चाहिए, अगर बैल की दौड़ने की क्षमता अंततः साबित हो जाती है, तो दौड़ को दौड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए और यह कि नियम और शर्तों के साथ दौड़ को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। अदालत ने बैलगाड़ी प्रेमियों और किसानों के पक्ष को समझा और सकारात्मक तरीके से फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद भाजपा के पिंपरी-चिंचवड़ अध्यक्ष और विधायक महेश लांडगे ने कहा कि यह हर लिहाज से बलिराजा की बड़ी जीत है। उन्होंने उन सभी का भी धन्यवाद किया जिन्होंने पक्षपात को भूलकर बैलगाड़ी की दौड़ में योगदान दिया।