पुणे. मंगलवार को हुई आम सभा की बैठक (General Assembly Meeting)में शामिल हुए नए 23 और पूर्व में शामिल किए गए 11 गांवों के विकास के लिए धन की व्यवस्था को लेकर हड़कंप मच गया। सत्ताधारी दल और महाविकास अघाड़ी (Maha Vikas Aghadi) के नगरसेवकों (Corporators) को इस मुद्दे पर एक दूसरे की आलोचना करने का मौका मिल गया था ।
चार साल पहले 11 गांव और जुलाई में 23 नए गांव पुणे नगर निगम में शामिल किए गए थे। विपक्षी पार्षदों ने नगर निगम पर गांव में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में विफल रहने का आरोप लगाया। सत्तारूढ़ भाजपा ने जवाब दिया, “राज्य सरकार को इन गांवों में विकास कार्यों के लिए भी धन मुहैया कराना चाहिए।” जिससे विवाद खड़ा हो गया।
5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था
11 गांवों का प्रतिनिधित्व करने वाले नगरसेवक गणेश धोरे ने कहा, “इन गांवों के नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलती हैं, कचरा नहीं उठाया जाता है, स्ट्रीट लाइट बंद हैं, बिजली बिल का भुगतान नहीं किया जाता है।” सदन के नेता गणेश बीडकर ने बताया कि उस समय इन गांवों में जलापूर्ति के लिए 5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था।
हस्तांतरण नि:शुल्क शुरू
आयुक्त विक्रम कुमार ने कहा, ‘ग्यारह गांवों में सीवेज और सीवेज डालने की व्यापक योजना तैयार की गई है। इसी के तहत टेंडर जारी कर दिए गए हैं। शेष 23 गांवों में सभी प्रकार की नहरें बिछाने की व्यापक योजना तैयार की जाएगी। इसके बाद अगले साल के बजट में इसके क्रियान्वयन के लिए प्रावधान किया जाएगा। पिछले 80 दिनों में 23 नए शामिल गांवों के टेंडर स्वीकृत किए गए हैं। जिला परिषद ने स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों सहित भवनों को नगर निगम को हस्तांतरित करने के लिए पैसे की मांग की है। हालांकि, इस संबंध में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार इन संपत्तियों का नगर निगम में हस्तांतरण नि:शुल्क शुरू हो गया है।