परिवार वालों ने किया स्वागत
ठाणे. जाके रखो साईयाँ मार सके न कोई नामक कहावत ठाणे में चरितार्थ होती नजर आई. यहां 103 वर्ष के एक बुजुर्ग सूखा सिंह छाबरा ने 24 दिनों तक आईसीयू में जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते हुए आखिरकार वैश्विक महामारी कोरोना को परास्त कर दिया है. 103 वर्ष के छाबरा कोरोना को हराकर अब अपने घर लौट आए हैं. इतना ही नहीं सूखा सिंह छबारा देश में सबसे अधिक उम्र वाले व्यक्ति हैं, जिन्होंने कोरोना को मात दी है.
बता दें कि छाबरा परिवार के 6 सदस्य रोग के चपेट में आ गए थे. अब तक 5 सदस्य ठीक को घर लौट चुके हैं. मरीज के 86 वर्षीय समधी तारा सिंह छाबरा का अब भी अस्पताल में उपचार चल रहा है. डॉक्टरों के अनुसार दो दिनों में तारा सिंह को भी घर भेज दिया जाएगा.
दो जून को किया गया था अस्पताल में भर्ती
डॉ. अमितलाला खोमने के अनुसार कोरोना पॉजिटिव, बुखार और सांस लेने में तकलीफ की वजह से 103 वर्षीय सूखा सिंह छाबरा को 2 जून को ठाणे के कौशल्या अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्होंने बताया कि मरीज की आयु देख आईसीयू में रख मरीज का उपचार शुरू किया गया था.
24 दिनों बाद रिपोर्ट आई निगेटिव
पहले दिन से ही मरीज में रोग से लड़ने की इच्छाशक्ति नजर आ रही थी. दवा और इच्छाशक्ति के बल पर मरीज की सेहत में कुछ दिनों में ही सुधार होन लगा था. 14 दिन बाद मरीज को आईसीयू से शिफ्ट कर वार्ड में लाया गया था. लेकिन सांस लेने में तकलीफ होने पर मरीज को दोबारा आईसीयू में रखना पड़ा. सही समय पर सही उपचार मिलने से मरीज की 24 दिनों में ही कोरोना रिपोर्ट नेवेटिव आई गई. 24 दिन आईसीयू और 3 दिन वार्ड में रखने के बाद मरीज को सोमवार को घर भेज दिया गया.
अस्पताल प्रबंधन ने एक चुनौती के रूप में मुफ्त में किया इलाज
अक्टूबर 1917 में जन्मे मरीज को 103 साल की उम्र में भी मधेमह, बीपी समेत कोई रोग नहीं था. मरीज की आयु और उनकी रोग से लड़ने के जस्बे को देखते हुए अस्पताल के ट्रस्टी डॉ. अमोल भानुशाली और डॉ. समीप सोहनी ने मरीज का मुफ्त में इलाज करने का फैसला लिया.
अस्पताल के तीन डॉक्टरों की टीम हर पांच घंटे में मरीज की जांच करती थी. अस्पताल में भर्ती मरीज के 86 वर्षीय समधी भी किसी रोग से ग्रसित नहीं हैं. परिवार के 61 वर्षीय निरंजन सिंह, 55 वर्षीय गुरजीत कौर, 56 वर्षीय दरविंदर कौर और तरणजीत सिंह पहले ही कोरोना पर विजय हासिल कर सकते हैं. डॉ. अमोल भानुशाली के अनुसार, रोग से लड़ छाबरा परिवार ने अन्य मरीजों के सामने एक बेहतर उदाहरण पेश किया है कि हर आयु का मरीज कोरोना से लड़ उस पर विजय पा सकता है.