
उल्हासनगर : उल्हासनगर विधानसभा क्षेत्र (Ulhasnagar Assembly Constituency) के अंतर्गत और शहर की सीमा (Border) से सटा है म्हारलगांव। तकरीबन 1 लाख की आबादी (Population) वाले इस गांव की शमसान भूमि (Cemetery Land) पिछले 8 साल से बंद है।
गांव (Village) में किसी के निधन होने पर उसका अंतिम संस्कार (Funeral) स्थानीय खेमानी स्थित शमसान भूमि में करना पड़ता है। इससे लोगों को असुविधा हो रही है। गांव वालों की मांग है कि जिस शमशान भूमि में हमारे पूर्वजों की चिता जली जिससे हमारी आस्था और भावना जुड़ी है वह शमसान भूमि दुबारा शुरू होनी चाहिए।
म्हारलगांव कभी छोटा गांव हुआ करता था। स्थानीय कल्याण – मुरबाड रोड़ से सटा यह गांव अब शहर में परिवर्तित हो चुका है। यहां बड़े पैमाने पर बड़े – बड़े कॉम्लेक्स बन चुके है और अभी भी बन रहे है गांव में शमसान भूमि है लेकिन दस साल एक बिल्डर द्वारा इसके आसपास की जमीन खरीदकर उसको विकसित किया जा रहा है। सर्वेक्षण में शमसान भूमि जाने वाला 10 फुट का रास्ता बिल्डर के हिस्से में आया है। जब बिल्डर ने अपना कार्य शुरू किया तो उस रास्ते को उन्होंने बंद करा दिया और तभी से स्थानीय नागरिक उक्त समस्या से रुबरु हो रहे है।
खदान के हिस्से में स्मशान के लिए जगह
कागजों पर म्हारलगांव में खदान के हिस्से में स्मशान के लिए जगह है। लेकिन सरकारी अधिकारी अभी भी शमसान भूमि को बनाने में दिलाई बरत रहे है। इन सब कारणों से म्हारलकरों को उल्हासनगर के खेमानी क्षेत्र में महानगरपालिका के स्मशान भूमि का उपयोग करना पड़ रहा है।
कोरोना काल में गांववासियों को अंतिम संस्कार के लिए दर दर भटकना पड़ा था। गांव के युवा इस बात से दुखी होते है कि जिस गांव में वह पैदा हुए और छोटे से बड़े हुए उनको आखिरी सफर दूसरे की हद में हो रहा है। सरकारी अधिकारी केवल आश्वासन देते है। अगर आगामी मार्च तक स्मशान भूमि की समस्या का समाधान नहीं हुआ तो 14 अप्रैल को भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब की जयंती पर उनका आशीर्वाद लेकर आमरण अनशन प्रारंभ करूंगा।
- रविंद्र लिंगायत, सामाजिक कार्यकर्ता, म्हारल गांव
अपनी मांग को लेकर मिशन माई म्हारल और गांव के अन्य युवाओं ने 4 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को निवेदन दिया था। इसके बाद इस मांग को लेकर गांव के युवाओं ने पोस्टकार्ड आंदोलन भी शुरू किया था। पिछले साल पोस्टर कैंपेनिंग की गई थी। खेमानी परिसर में उल्हासनगर महानगरपालिका क्षेत्र के नागरिकों को अंतिम संस्कार के लिए केवल 500 रुपए और म्हारलगांव के निवासियों को 1500 से 1800 रुपए का भुगतान करना पड़ता है। गांव वालों कहना है पहले हमारी भावना का हनन होता है उसके बाद समय और अधिक पैसे लिए जाते है जो न्याय संगत नहीं है।
सरकारी महकमे के अधिकारी जान बूझकर हमारे गांव के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे है। गांव में कुछ परिवार ऐसे है, जो हर दिन मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते है और ऐसे संकट के जीवन में उनके पास अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं होते है। उल्हासनगर महानगरपालिका क्षेत्र में ले जाकर अंतिम संस्कार करना पड़ता है जो मंहगा और असुविधा जनक होता है। सरकार को हमारी मांग पर ध्यान देना चाहिए।
- निकेत व्यवहारे, म्हारल गांव