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    कल्याण : स्थानीय निकायों में ओबीसी (OBC) का आरक्षण (Reservation) रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली राज्य सरकार (State Government) की याचिका (Petition) को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।  महाराष्ट्र सरकार ने स्थानीय निकायों में ओबीसी के आरक्षण को बरकरार रखने के लिए अध्यादेश जारी किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश के आरक्षण पर रोक लगा दी है, अब केंद्र सरकार को तुरंत ओबीसी का सरकारी डेटा राज्य सरकार को भेजना चाहिए अन्यथा सरकार को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे ऐसी चेतावनी कांग्रेस ओबीसी के जिला अध्यक्ष जयदीप सानप ने दी हैं।

     1939 के बाद ओबीसी की जातिगत जनगणना नहीं होने के कारण आरक्षण स्थगित कर दिया गया था।  उन्होंने यह भी कहा कि देश में बहुसंख्यक ओबीसी को अकारण नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।  2010 में डॉ.कृष्णमूर्ति के खिलाफ भारत सरकार की एक अदालत ने आदेश दिया था कि ओबीसी को ट्रिपल टेस्ट आयोजित करके और कानून के अनुसार आरक्षण देकर स्थानीय  निकाय में आरक्षण दिया जाना चाहिए।  इसके लिए राज्य सरकार ने राज्य पिछड़ापन आयोग नियुक्त किया लेकिन वित्त मंत्री ने वह फंड नहीं दिया जिसे 400 करोड़ रुपये की जरूरत थी।

    राज्य सरकार आंकड़े उपलब्ध नहीं करा सकी

    अदालत ने स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को खारिज नहीं किया लेकिन फैसला सुनाया कि कानूनी और तकनीकी आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए लेकिन तकनीकी आवश्यकताओं का पालन न करने के कारण ओबीसी राजनीतिक आरक्षण समाप्त हो गया है।  1939 के बाद देश में जातिगत जनगणना नहीं हुई। मनमोहन सिंह सरकार ने ओबीसी  पहले जनगणना पर करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन सरकार के जाने के कारण राज्य सरकार आंकड़े उपलब्ध नहीं करा सकी।  बार-बार अदालत के आदेश के बावजूद, सरकार जातिगत जनगणना नहीं करती है, जिसने फिर से ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय किया है। कल्याण-डोबिवली शहर जिला कांग्रेस ओबीसी के जिलाध्यक्ष जयदीप सानप ने चेतावनी दी कि राज्य और केंद्र सरकार एक-दूसरे की आलोचना किए बिना समय बर्बाद किए निर्णय लेते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाएं, अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।