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    ठाणे : कोई गंभीर मानसिक बीमारी (Mental Illness) न होने के बावजूद ठाणे के मनोचिकित्सालय में पिछले कई वर्षों से मरीजों को रखा गया है। इन मरीजों के दुर्दशा को लेकर मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी (Dr. Harish Shetty) ने हाईकोर्ट (High Court) में एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation) दायर की है।  इस याचिका के जरिए उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम (Mental Health Services Act), 2017 को लागू करने की मांग की है। इस संदर्भ में हाई कोर्ट 30 मार्च को सुनवाई होने वाली है। 

    शेट्टी ने याचिका में कहा है कि मानसिक बीमारी से ग्रस्त नागरिकों को मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 के तहत संरक्षित किया जाता है। साथ ही, कानून इन मरीजों को मनोरोग अस्पतालों से छुट्टी के लिए मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड में जाने की अनुमति देता है। साथ ही उन्होंने कहा याचिका में कहा है कि “कई उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि मानसिक रूप से बीमार मरीज यदि मनोरोग अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद अगर वे वहां नहीं रहना चाहते हैं, तो लोगों को सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। लेकिन अब तक इस संदर्भ में स्थिति असंतोषजनक है।”  शेट्टी ने फैमिली कोर्ट द्वारा 10 दिसंबर, 2021 को पारित एक आदेश के आधार पर याचिका दायर की है।

    इस आदेश में एक महिला की दुखद कहानी का उल्लेख किया गया है। जिसमें कहा गया है कि महिला को 2009 में ठाणे मनोरोग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। याचिका में कहा गया है कि, हालांकि, वह 2021 तक उस अस्पताल में रहीं। अदालत ने पाया कि उसके पति और परिवार ने मानसिक बीमारी के कारण उसे छोड़ दिया था। जबकि उक्त महिला को 2014 में मनोरोग अस्पताल ने छुट्टी दे दी थी। लेकिन जब वह घर गई तो पता चला कि उसके पति द्वारा उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद, वह मनोरोग अस्पताल वापस लौट आई। शेट्टी ने अदालत से याचिका द्वारा 30 मार्च को ठाणे मनोरोग अस्पताल की घटना की जांच के लिए अधिकारियों को नियुक्त करने और यह पता लगाने का अनुरोध किया है कि राज्य के मनोरोग अस्पतालों में ऐसे और कितने मरीज हैं। हालांकि इस याचिका पर 30 मार्च को सुनवाई होनी है।