वर्धा. राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा के अनेक दिग्गज पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. हिंगनघाट के पार्षद छोड़कर जाने के उपरांत जिलाध्यक्ष डा. शिरीष गोडे ने भी भाजपा को अलविदा कर दिया. पार्टी छोड़कर जाने वाले नेता गुटबाजी व नीतियों का हवाला दे रहे हैं. परिणामवश पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को इस पर मंथन करने की आवश्यकता निर्माण हुई है. एक दशक पहले भाजपा में इनकमिंग जो सिलसिला शुरू हुआ वह 2019 के विधानसभा चुनाव तक बरकरार रहा. कांग्रेस, राकां, शिवसेना और अन्य दलों के अनेक पदाधिकारी व कार्यकर्तांओं ने भाजपा का कमल हाथ में थाम लिया था. कांग्रेस, राकां से बड़े पैमाने पर आउटगोइंग हुआ. परंतु समय का चक्र अब बदल गया है.
राज्य में कांग्रेस व राकां यह दोनों पार्टियां शिवसेना की सत्ता में भागीदार बन चुकी है. महाविकास आघाड़ी सरकार कितने दिन चलेगी, यह बताना असंभव होने के कारण अनेक पदाधिकारी व नेता वेट एंड वॉच की भूमिका में रहे. किंतु राज्य सरकार को दो वर्ष पूर्ण होने के कारण व आगामी स्थानीय स्वराज संस्था के चुनाव के मद्देनजर अनेकों ने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस, राकां व शिवसेना का दामन थामना शुरू किया है.
शीर्ष नेताओं का बढ़ता जा रहा सिरदर्द
हिंनगघाट नप के आठ पार्षद समेत दो पूर्व पार्षदों ने सेना में प्रवेश किया. तब से भाजपा छोड़ने वालों की लाइन लग गई है. वर्तमान जिलाध्यक्ष डा. गोडे बीते माह वरिष्ठों को त्यागपत्र भेज दिया था. इसके बाद उन्हें समझाने का प्रयास हुआ, लेकिन वह विफल ही साबित हुआ. आने वाले दिनों और नेता व पार्षद, जिप सदस्य भाजपा छोड़ सकते है, ऐसी राजनीतिक गलियारे में चर्चा है. परिणामवश भाजपा के शीर्ष नेताओं को समय पर कदम उठाना आवश्यक हो गया है. नहीं तो पार्टी के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है.
2 रामदास में चल रहा दावपेंच
लोकसभा चुनाव को अभी दो वर्ष का समय है. परंतु भाजपा के दो रामदास में अभी से ही दावपेंच चल रहे है. वर्तमान सांसद रामदास तड़स दूसरी बार सांसद बने है. किंतु अचानक विधान परिषद सदस्य रामदास आंबटकर भी एक्टिव होने के कारण अगली बार टिकट किस को इस पर जोर शोर से चर्चा आरंभ हो गई है. बीते कुछ माह से आंबटकर जिले के चारों विधानसभा क्षेत्र में विविध कार्यक्रमों को उपस्थिति दर्शा रहे है. शुरू में नदारद रहने वाले आंबटकर अचानक एक्टिव होने के कारण सांसद तड़स की मुश्किलें बढ़ सकती है. आंबटकर संघ परिवार के खास होने के साथ तेली समाज से भी होने के कारण उनकी दावेदारी तगड़ी हो सकती है.
किसान फिर मुश्किल में फंस गया
इस वर्ष मानसून मेहरबान होने के साथ ही उपज को अच्छे दाम मिलने से किसानों के चहरे पर खुशी थी. लेकिन बीते एक पखवाड़े से उनके मस्तिष्क पर चिंता की लेकर फिर खिंची गई है. अचानक कपास के दाम एक हजार रुपये लुढ़के गये. तो वहीं सप्ताहभर से बदरीला मौसम होने के कारण तुर की फसल संकट में आ गई है. प्राकृतिक आपदा का एक और संकट किसानों पर मंडरा रहा है. प्रकृति के आगे प्रतिवर्ष किसान बेवस नजर आ रहा हे. मानसून की लौटती बारिश ने कपास काफी नुकसान किया था. अच्छे दाम के कारण किसानों को उम्मीदे थी, किंतु वह भी अब टूट रही है.