Representational Pic
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    वर्धा. राज्य की सत्ता बेदखल होने से तथा भाजपा की लोकप्रियता घटने से जिले में भाजपा का कारवा तुटकर बिखरने लगा है. हिंगनघाट के बाद जिले के अन्य क्षेत्र से अनेक जनप्रतिनिधि भाजपा छोडकर भाग रहे है. धिरे धिरे भाजपा की मजबुत पकड जिले में ढिली होने लगी है.

    बिते एक दशक से जिले में भाजपा में इनकमिंग हो रही थी.अनेक कद्दावार नेता कांग्रेस तथा अन्य दल छोडकर भाजपा का दामन थाम रहे थे. अन्य दलों से आये नेता व कार्यकत्र्याओं के कारण भाजपा जिले में सशक्त हुई. मोदी का जादू व नेता-कार्यकर्ता की फौज होने के कारण ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्र में भाजपा ने अपनी जडे मजबुत की. परिणाम वश जिले की सभी नगर परिषद के साथ जिला परिषद में भाजपा को बहुमत की सत्ता मिली. साथ ही ग्रापं चुनाव में भी पहली बार बडी सफलता मिली थी. 

    3 विधायक है भाजपा के

    2014 के चुनाव में भाजपा के पास 4 में से 2 विधायक थे.परंतु इस बार उसके तीन विधायक चुनकर आये. परंतु राज्य की सत्ता भाजपा को गवांनी पडी. 2005 तक भाजपा जिले में नाममात्र ही थी.किंतु इसके बाद नितीन गडकरी ने पार्टी को मजबूत करने के लिये अन्य दलों के नेताओं का प्रवेश पार्टी में किया. जिससे धिरे धिरे पार्टी की जडे मजबुत होने लगी.2009 में पहली बार जिले में आर्वी क्षेत्र से दादाराव केचे के रूप में भाजपा का विधायक बना.2014 में केचे की पराजय हुई. परंतु समीर कुणावार व डा. पंकज भोयर हिंगनघाट व वर्धा से विधायक बने. 2019 में भाजपा के तीन विधायक चुनकर आये तथा सांसद रामदास तडस दुसरी बार चुनकर आये.

    नाराजगी का दौर बडा

    एक और पार्टी जिले में मजबूत होकर उभरी तो दुसरी और पार्टी में गुटबाजी के साथ नाराजगी बढने लगी. बिते कुछ सालों से पार्टी में नाराजगी का दौर चल रहा था. परंतु पार्टी छोडने के लिये कोई तैयार नही था. राज्य व केंद्र में सत्तासीन पार्टी को छोडना मुर्खता ही था.लेकीन अब स्थिती बदलने लगी है.राज्य में पार्टी सत्ता से जाने के बाद पार्टी में खुलकर नाराजगी का दौर उभरकर आने लगा है.नगर परिषद के साथ जिला परिषद में भी नाराज नेता खुलकर बोलने लगे है.

    हिंगनघाट में पहला झटका

    भाजपा को पहला झटका हिंगनघाट में लगा है.नप में सत्तासीन पार्टी के 10 नगरसेवक तथा पुर्व नगरसेवक पार्टी छोडकर सेना में चले गये.इसके बाद देवली के युवा मोर्चा के पादाधिकारियों ने सेना का दामन थाम लिया. कारंजा तहसील के परसोडी ग्रापं के 5 सदस्यों ने अपना भाजपा को छोडने का निर्णय लिया है.हिंगनघाट के बाद धिरे धिरे पार्टी छोडनेवालों की संख्या बढ रही है.

    पार्टी छोडने के लिये कई कतार में

    भाजपा की एकला चलो की निती से उब चुके अनेक पदाधिकारी पार्टी छोडने के मुड में है.इसमें जिला परिषद कुछ सदस्यों के साथ नगरसेवकों समावेश होने की जानकारी है.राज्य के सत्तासीन दलों ने भाजपा के नाराज नेताओं खास टारगेट किया है. नपं, नगर परिषद व जिला परिषद चुनाव के पुर्व अनेक पदाधिकारी व कार्यकर्ता भाजपा को छोडकर अन्य दलों का दामन थाम सकते है. जिससे भाजपा के लिये खतरे घंटी हो सकती है. स्थानीय भाजपा नेताओं सभी को विश्वास में लेकर काम करना होगा. नही तो भाजपा के लिये आगे का सफर मुश्कील भरा साबित हो सकता है.