गुलाबी इल्ली पर करें नियंत्रण, कपास उत्पादकों से कृषि विभाग ने किया आह्वान

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    वर्धा. जिले में कपास की फसल पर गुलाबी (बोंड) इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है़  यह प्रकोप कुछ जगहों पर मामूली तो कहीं ज्यादा देखने को मिल रहा है़ इस कृमि के नियंत्रण के लिए किसानों को सावधानी बरतने की अपील कृषि अधीक्षक डा़ विद्या मानकर ने की है़ गुलाबी बोलवार्म के संक्रमण से कलियों को होने वाली क्षति के कारण आधे खिले हुए फूलों पर इल्ली दिखाई दे रही है़ इसे डोमकली कहते हैं, ऐसी कलियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए़ क्योंकि इसमें कीड़े होते हैं.

    फेरोमोन ट्रैप को फसल की ऊंचाई से एक फीट ऊपर रखा जाना चाहिए, जैसे कि दो प्रति एकड़़ यदि इस जाल में आठ से दस पतंगे लगातार तीन दिन तक पाए जाएं तो मिश्रण का छिड़काव करें. प्रति सप्ताह एक एकड़ खेत का प्रतिनिधित्व करने वाले 20 पेड़ों का चयन किया जाना चाहिए और प्रत्येक चयनित पौधे पर फूलों, पत्तियों और फलियों की संख्या की गणना की जानी चाहिए और गुलाबी बॉलवर्म से संक्रमित फूलों, पत्तियों और फली के प्रतिशत की गणना की जानी चाहिए.

    यदि संक्रमण का प्रतिशत 5 से अधिक हो तो कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए़ 5 प्रतिशत से अधिक इममकेटिन बेंजोएट 5 प्रतिशत दानेदार 3.8 से 4.4 ग्राम या एथियोन 50 प्रतिशत द्रव 15 से 20 मिली थियोडिकार्ब 75 प्रतिशत पाउडर 20 ग्राम या फेनवालेरेट 20 प्रतिशत तरल 5.5 मिली या साइपरमेथ्रिन 10 प्रतिशत तरल 7.6 मिली से अधिक के मामले में इनमें से कोई भी कीटनाशक प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.

    यदि संक्रमण 10 प्रतिशत से अधिक है, तो ऐसे स्थानों पर आवश्यकता के अनुसार संक्रमण नहीं बढ़ना चाहिए, क्लोरट्रानिलिप्रोल 9.3 प्रतिशत प्लस लैम्बडासीहैलोथ्रिन 4.6 प्रतिशत 5 मिली या क्लोरपाइरीफोस 50 प्रतिशत प्लस साइपरमेथ्रिन 5 प्रतिशत 20 मिली या इंडोक्साकार्ब 14.5 प्रतिशत प्लस एसिटामिप्रिड 7.7 प्रतिशत 10 मिली को 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. कृषि विभाग ने जानकारी दी है.

    सोयाबीन का इस प्रकार करें बचाव

    जिले में सोयाबीन की फसल पर येलो मोज़ेक वाइरस का अटैक दिखाई दें रहा है़ संक्रमित पत्तियों की नसें पीली हो जाती हैं. साथ ही पत्ती पर पीली हरी और पीली हरी धारियां दिखाई देती हैं. पेड़ की पत्तियां लुढ़क जाती हैं. पत्ती कोशिकाएं मर जाती हैं और पेड़ मुरझा जाता है. यह रोग मुख्य रूप से रोगग्रस्त बीजों से फैलता है. माध्यमिक प्रसार मावा कृमि के कारण होता है, आमतौर पर 30 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर का तापमान रोग के पक्ष में होता है और इस जलवायु में रोग के लक्षण प्रमुख होते हैं. इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर रोगग्रस्त पौधों को खेत में से उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए. फसलों और बांधों में खरपतवारों का नियंत्रण आवश्यक है.

    सोयाबीन की फसल में सफेद मक्खी और काली मक्खी के प्रकोप से बचने के लिए पीले चिपचिपे जाल को 10 से 12 हेक्टेयर में लगाना चाहिए. चूंकि यह रोग मुख्य रूप से सफेद मक्खी और सफेद मक्खी द्वारा फैलते हैं. इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रश, एसएल 2.5 मिली अथवा फ्लोनिकामिड 50 प्रश डब्ल्यू जी 3 ग्राम एवं थायोमीथाकझाम 25 प्रश डब्ल्यू जी 3 ग्राम इस कीटनाशक की प्रति 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.