वर्धा. एसटी महामंडल का राज्य सरकार में विलय करने के साथ अन्य प्रलंबित मांगों को लेकर एसटी कर्मचारियों का बेमियादी काम बंद आंदोलन शुरू है, जिससे पिछले अनेक दिनों से एसटी बसों की चक्के रूक गए हैं. परिणामस्वरूप जनजीवन प्रभावित हो गया है. उधर बस यात्रियों के साथ-साथ विद्यार्थियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. निजी बस वाहनों ने अपने किराए में भारी वृद्धि करने से यात्रियों को आर्थिक परेशानी भी सहनी पड़ रही है.
आंदोलन खत्म होने की जा रही है प्रतीक्षा
परिवहन महामंडल के कर्मचारी अपनी न्यायोचित मांगों के लिए सरकार के पास गुहार लगा रहे हैं. इन कर्मचारियों की मांगें सरकार ने अभी तक मंजूर नहीं की हैं, जिससे यात्रियों के हाल बेहाल हो रहे हैं. एसटी कर्मचारी भी आंदोलन पर अड़े हुए है. आंदोलन खत्म करने के लिए सरकार द्वारा उपाय निकालने की मांग यात्री कर रहे है. ज्ञात रहे कि, दीपावली की छुट्टियां समाप्त होकर स्कूल शुरू हो गए हैं, लेकिन एसटी बसें बंद रहने से शहरी भागों में शिक्षा ले रहे ग्रामीण भागों के छात्रों को स्कूल पंहुचने में दिक्कतें आ रही है. परिणामस्वरूप ग्रामीण भागों के छात्रों को शहर के स्कूलों में आने जाने के लिए निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ रहा है.
समय पर नहीं पहुंच पाते स्कूल और कालेज
निजी वाहनों का समय निश्चित नहीं रहने से स्कूल पहुंचने में देरी हो रही है, इसका सीधा असर उनकी शिक्षा पर होने की संभावना निर्माण हो गई है. उसी प्रकार से छात्रों को अधिक किराया भी देना पड़ रहा है. रोज स्कूल पहुंचने में हो रहे लेट गांवों में बस सेवा शुरू न होने के कारण स्कूल-कालेज में जाने में परेशानी झेलनी पड़ती है. रोजाना किसी न किसी से लिफ्ट मांगकर आना-जाना पड़ता है. कई बार तो साधन न मिलने के कारण समय पर स्कूल-कालेज नहीं पहुंच पाते. पहले कोरोना, अब बसें न चलने से शिक्षा बाधित हो रही है.
बस की सुविधा नहीं, छूट जाते हैं जरूरी काम
गांव में बस सुविधा न होने के कारण आटो या अन्य सवारी निजी वाहनों के भरोसे रहना पड़ता है. इनके आने-जाने का कोई समय निर्धारित नहीं होता. इस कारण कई बार बेहद जरूरी काम भी छूट जाते हैं. स्वयं का साधन है तो जाओ, नहीं तो घर बैठो, ऐसी स्थिति है. हालत यह है कि अगर आपके पास बाइक या अन्य कोई साधन है तो चले जाओ, नहीं तो अपने घर पर ही बैठो. प्रशासन को चाहिए कि जल्द बस सेवा शुरू करवाए.