गुरु तेगबहादुर ने जगाई चेतना, राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रो. बेदी ने कहा

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    वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में नौवें सिख गुरु, गुरु तेगबहादुर की 400वीं जयंती वर्ष के अवसर पर ‘गुरु तेगबहादुर की वाणी का संदेश’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में हिमाचल प्रदेश स्थित केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. हरमहेंद्र सिंह बेदी ने कहा कि गुरु तेगबहादुर ने गुरुनानक की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अहिंसा परमो धर्म को व्यावहारिक स्वरूप दिया़  उनकी वाणी ने एशिया के देशों में चेतना जगाने का काम किया़  उनको याद करना भारतीय चिंतन, परंपरा और संस्‍कृति से जुड़ना है़  गालिब सभागार (तुलसी भवन) में आयोजित संगोष्‍ठी का आयोजन किया गया. 

    गुरु तेगबहादुर ने समाज को भयमुक्त करने का संदेश अपनी वाणी से दिया़  उन्‍होंने धर्मांतरण को समाप्‍त करने में क्रांतिकारी भूमिका निभायी. गुरु तेग बहादुर का अध्‍ययन, उनका बलिदान, उन‍की वाणी का मूल सरोकार आज के एशिया के देशों में अध्‍ययन के केंद्रों में है. उन्‍होंने निर्भय और निर्वेर होकर पूरे आवाम के लिए एकता और अखंडता का संदेश दिया. उनका साहित्‍य सुरदास की भाषा के बराबर का है. उन्‍होंने गद्य भी ब्रज में लिखकर साहित्‍य को समृद्ध किया. उनकी शहादत ने विश्‍व को नए संकल्‍प दिए. उनको याद करना भारतीय विरासत को याद करना है. अध्‍यक्षता कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने की़. 

    परहित की भावना का दर्शन होता है : प्रो. शुक्ल 

    प्रो. शुक्‍ल ने कहा कि भारत की परंपरा को केवल शब्‍दविद् ही नहीं अपितु अर्थविद् भी होना पड़ेगा. अर्थविद् की परंपरा में गुरु तेग बहादुर को देखा जाना चाहिए. उन्‍होंने धर्म को बचाकर अपना बलिदान दिया. परहित की भावना का दर्शन तेग बहादुर के जीवन से मिलता है. विशेष वक्‍ता के रूप में साहित्‍यकार डा. गुरनाम कौर ने कहा कि‍ गुरु तेगबहादुर परोपकार के शिखर थे. उन्‍होंने आतंक और भय की राजनीति‍ को ललकारा. उन्‍होंने द्वंद्व युक्‍त व्‍यक्ति को द्वंद्व मुक्‍त बनाने का कार्य किया. 

    रचनावली का किया गया विमोचन 

    विशेष अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए साहित्‍यकार प्रो. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ ने गुरु तेगबहादुर की स्‍मृति में ‘गुरु तेग बहादुर शतवंदन’ कविता सस्‍वर सुनायी. इस दौरान रचनावली का विमोचन अतिथियों के हस्ते किया गया. इस समय सिद्धार्थ विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे और सांची विश्‍वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा एस. गुप्‍ता की विशेष उपस्थिति रही. स्‍वागत जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे, संचालन दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. हरीश अरोड़ा एवं धन्‍यवाद एसोशिएट प्रो. डा. प्रियंका मिश्रा ने किया.