वर्धा. नागपुर करार के अनुसार प्रति वर्ष विधानमंडल का एक अधिवेशन नागपुर में लेना अनिवार्य है़ परंतु महाविकास आघाड़ी ने लगातार दूसरे वर्ष कोरोना का हवाला देते हुए मुंबई में शीतसत्र लेने का निर्णय लिया है़ दूसरी बार इस सरकार ने नागपुर करार का उल्लंघन किया है़ इस पर जय विदर्भ पार्टी ने असंतोष जताया है़ विदर्भ से सरकार को कोई लगाव नहीं है, इसलिए शीघ्र स्वतंत्र विदर्भ का निर्णय लेने की मांग की गई़ मंत्रिमंडल व प्रशासन के लिए पर्याप्त निधि नहीं है़ मुख्यमंत्री पर हुई शल्यक्रिया तथा कोरोना के तीसरे लहर की आशंका को जताते हुए उक्त शीतसत्र नागपुर में न लेने का निर्णय लिया गया़ यह निर्णय विदर्भ पर अन्यायकारक है़ इससे विदर्भवासियों में रोष दिखाई दे रहा है.
विपक्षी दलों ने साध रखी है चुप्पी
विदर्भ के 62 विधायक इस संदर्भ में कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है. वे विदर्भ की समस्या रखने के लिए असमर्थ साबित हो रहे है. 28 सितंबर 1953 को विदर्भ को महाराष्ट्र में विलय करने के लिए नागपुर करार किया गया था़ परंतु इस करार के अनुसार काम नहीं हो रहा है़ बार-बार आश्वासन के बाद आखिरकार शीतसत्र मुंबई में लेने का निर्णय हुआ है़ पिछले साल भी कोरोना का हवाला देते हुए नागपुर में अधिवेशन नहीं लिया़ परंतु विरोधी दल भी इस संबंध में कुछ नहीं बोल रहा.
जय विदर्भ पार्टी ने की विदर्भ की मांग
मुख्यमंत्री की शल्यक्रिया हुई हैं, बावजूद इसके उपमुख्यमंत्री के पास प्रभार देकर नागपुर में विधानमंडल का कामकाज पूर्ण किया जा सकता था़ परंतु ऐसा न करते हुए जनतंत्र पर कालिख पोतने का काम सरकार ने किया है़ महाराष्ट्र में रहकर विदर्भवासियों की समस्या हल नहीं होती हैं, तो हमें हमारे अधिकार का विदर्भ दिए जाने की मांग जय विदर्भ पार्टी के अरुण केदार, विष्णु आष्टीकर, रंजना मामर्डे, मुकेश मासुरकर, सुयोग निलदावार, गुलाब धांडे, अरुण मुनघाटे, कृष्णा भोंगाडे, सुदाम राठौड़, मारोतराव बोथले, तात्या मते ने की है.