केरोसीन बिना गरीब परेशान, आठ वर्षों पूर्व से केरोसीन वितरण सिस्टम बंद

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    •  घरेलू चूल्हे जलाने से चिता तक होता था उपयोग 
    • केरोसीन हुआ आंखों से ओझल

    आसेगांव. बीते आठ वर्षों पूर्व में केरोसीन मिट्टी का तेल हर घर में सरकारी नियम के अनुसार पहुंचाया जाता. प्रत्येक गांव में केरोसीन डीलर की दूकान पर राशन कार्ड के माध्यम से केरोसीन वितरण किया जाता था. उस दौरान हर घर में चूल्हा जलाने से लेकर चिता को आग लगाने तक केरोसीन का उपयोग होता था. इतना ही नहीं ग्रामीण इलाकों में बिजली आपूर्ति खंडित होने पर इसी मिट्टी के तेल के दिए जलाए जाते थे. किंतु मिट्टी के तेल के वितरण का सिस्टम सरकार द्वारा बीते आठ वर्षों पूर्व से पूर्णतः बंद कर दिया गया है. जिस वजह से केरोसीन की सुगंध समेत केरोसीन ही आंखों से ओझल हो गया है. 

    बीते कुछ समय पहले केरोसीन का कोटा सरकार द्वारा एपीएल व बीपीएल कार्ड धारकों को वितरण करने के उद्देश्य से गांव के केरोसीन डीलरों तक पहुंचाया जाता था. जिस प्रकार से वर्तमान में राशन वितरण होता है. उसी प्रकार केरोसीन वितरण होता था. जिसे गरीब लाभार्थी लेकर अपने उपयोग में लिया करते थे. उस समयकाल के दौरान केरोसीन का तेल चार पहिया वाहनों में डालकर वाहनों को भी चलाया जाता था. कुछ गरीब तबके के लोग अपने राशन कार्ड पर मिलने वाले केरोसीन में से घर के उपयोग योग्य केरोसीन रखकर उक्त केरोसीन को बेच दिया करते थे.

    उस दौरान लगभग सभी घरों में स्टोव के माध्यम से घरों की गृहणियां भोजन भी बनावाया करती थी. लेकिन जब से घरेलू गैस अमल में आया है और सरकार ने हर घर तक गैस कनेक्शन पहुंचाने का कार्य शुरू किया है. तब से केरोसीन को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. केरोसीन बंद होने से सभी केरोसीन डीलरों के बुरे दिन आ गए है. क्योंकि सरकार ने केरोसीन बंद करने के बाद एका एक जिस तरह से केरोसीन की डीलरशिप बंद हुई है तो सरकार ने उन डीलरों को अन्य किसी भी बिक्री की डीलरशिप नहीं देने से उन डीलरों पर भी आर्थिक संकट छाया हुआ है. वर्तमान में सूत्रों की जानकारी के अनुसार पूरे जिले में ही केरोसीन बिक्री के साथ ही डीलरशिप भी बंद हो गई है. 

    वाहन वालो का होता था आर्थिक फायदा 

    जिस समयकाल के दौरान केरोसीन राशन कार्ड के माध्यम से गरीबों को वितरण किया जाता था. उस दौरान एक या दो लीटर में एक माह का केरोसीन कार्यकाल गरीबो के लिए कोटे के अनुरूप बस उपयोग में बस होता था. अन्य जितना भी केरोसीन बचता था उसे गरीब लोग चार पहिया वाहन चालकों को बेचकर कुछ राशि घर बैठे कमवा लेते थे. डीजल के और केरोसीन के दामो में 20 रुपए का अंतर रहने से वाहन चालकों को आर्थिक लाभ भी प्राप्त हो जाता था.