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    आसेगांव. कोरोना संक्रमित आंकडों में आ रही लगातार गिरावट के कारण जिले में सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक सभी प्रतिष्ठान शुरू रखने की अनुमति मिलने से व्यापारी वर्ग में खुशी का वातावरण निर्माण हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक हर तरफ अब दिन के समय में लाकडाउन से पूर्व वाली परस्थिति दिखाई दे रही है. अब पहले जैसा माहोल बनने लगा है़  और कोरोना पाजिटिविटी रेट भी जीरो प्रतिशत में आ गया है. जिस तरह से सरकार, प्रशासन द्वारा लाकडाउन पाबंदी में छुट दी गई है.

    उसी की तर्ज पर अब ग्रामीण इलाकों की शालाओं को भी खोलने की अनुमति दिए जाने की मांग पालक वर्ग करने लगे है. वैसे तो वर्तमान की गाइडलाइन के अनुसार जिस गांव में एक माह की समयावधि में एक भी कोरोना पाजिटिव संक्रमित नहीं पाया गया. उस गांव में पालक तथा ग्राम पंचायतों के रिपोर्ट पत्र के अनुसार शालाएं शुरू की जा सकती है. लेकिन शालाओं को शुरू करने की अनुमति देने से हर कोई कतरा रहा है.

    अनुमति ना दे पाने का मुख्य कारण यह भी है कि यदि हम अनुमति दें और कोई छात्र शाला शुरू होने के बाद कोरोना संक्रमित हो जाएं तो प्रशासन की रडार पर हम ही आएंगे. लेकिन इन कारणों के चलते शालाओं में अध्ययनरत विद्यार्थिओं का शैक्षिक नुकसान होने लगा है. क्योंकि ग्रामीण इलाकों की अधिकतर संस्थाएं और जिप की लगभग सभी शालाएं बीते 16 माह से पूरी तरह से कोरोना गाइडलाइन के कारण विद्यार्थी की अनुपस्थिति से वीरान नजर आने लगी है. 

    ग्रामीण इलाकों में कुछ शालेय संस्थाओं द्वारा 8वीं से 12वीं तक शालाएं शुरू की गई है. और अभी हाल ही में राज्य की शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड जी ने भी आगामी 17 अगस्त से राज्य के ग्रामीण इलाकों में छठीं कक्षा से शालाएं शुरू करने की बात कही है. सरकार द्वारा लिए जाने वाले इस निर्णय के कारण पहली से पांचवीं तक के हजारों छात्रों को फिर से शिक्षा से वंचित रहने की नौबत के संकेत बन गए है. जबकि अभिभावकों द्वारा पूर्णतः शालाएं शुरू करने की मांग जोर पकड़ने लगी है.

    छात्र भी शालाओं में जाने तथा शिक्षा प्राप्ति के लिए बेहद उत्साहित नजर आने लगे है. पालक वर्ग के अनुसार विगत डेढ़ वर्ष से कोरोना मरीजों की संख्या ग्रामीण इलाकों में बढ़ने से सरकारी परिपत्र के निर्णय अनुसार शालाएं बंद रखने का जो निर्णय विद्यार्थिओं के हित में लिया गया वो स्वागत योग्य है. लेकिन अब जब गांव इलाकों में कोरोना के मरीजों की संख्या जीरो प्रतिशत पर पहुंची है़  तो विद्यार्थिओं का भविष्य बनाने के लिए सरकार, प्रशासन को पहली से लेकर शालाएं शुरू करने की अनुमति देना चाहिए.

    सरकारी आदेश का पालन कर हम अपने बच्चों को मास्क लगाकर ही शालाओं में भेजेंगे. क्योंकि जितनी चिंता सरकार को है़  उतनी चिंता हमें भी अपने बच्चों को लेकर है. बस शालाएं शुरू करने से पूर्व शालाओं को सैनिटाइजेशन करना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना शालाओं के शिक्षकों व शाला समितियों की जिम्मेदारी है.