Farmers Suicide
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    • राज्यभर में 205 किसानों की आत्महत्या आयी सामने
    • जिले के 2 किसानों का समावेश

    यवतमाल. किसान आत्महत्याओं को रोकने के लिए सरकार की ओर से जरूरी कदम नहीं उठाए जा रहे है. जिसके चलते किसान आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. पूरे सालभर में सिंतबर माह तक किसान आत्महत्या के आंकडों पर नजर डाले तो राज्यभर में 205 किसानों ने मौत को गले लगाया है. वहीं विदर्भ क्षेत्र में सितंबर माह के 12 दिनों में 12 किसानों ने आत्महत्या कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली है. इनमें यवतमाल जिले के दो किसानों का भी समावेश है.

    एक ओर अतिवृष्टी से तबाह किसानों को राज्य सरकार मुआवजा देने की घोषणा दे रही है, तो दुसरी ओर मुख्यमंत्री किसान योजना की घोषणा की गयी है, लेकिन विदर्भ में किसानों की दिक्कतें कम होती नही दिख रही है. बीते सप्ताह विदर्भ में 12 किसानों ने आत्महत्या कर ली थीं. इनमें यवतमाल जिले के 2 किसानों का समावेश है.

    इनमें मारेगांव तहसील के पांढरकवडा निवासी सुधीर गोल्हर, आर्णी तहसील के लोणबेहल निवासी प्रविण मोरे का समावेश है. इसी तरह वर्धा जिले के देवली तहसील के अंबोडा गांव के गुणवंत मडावी,अमरावती जिले के धारणी तहसील के नारदू गांव के रतनलाल धुर्वे, अमरावती जिले के महादेवपुरा गांव के रौशन माहेकर, गोंदिया जिले के नवेगांव बांध निवासी सोविंदा राऊत, तथा चंद्रपुर जिले के घोसरी गांव निवासी मारोती नाहगमकर का समावेश है.

    इस वर्ष विदर्भ में 1 हजार 60 और बीते 13 दिनों में 26 किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की दुर्भाग्यजनक घटनाएं सामने आयी, इसमें यवतमाल जिले के 12 किसानों की आत्महत्याओं का समावेश है.इन आत्महत्या करनेवाले किसानों की सूची विदर्भ जनआंदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने सरकार को भेजी है. किसान आत्महत्याओं का दायरा अब पश्चिम विदर्भ में सूखी खेती में कपास, सोयाबीन लेनेवाले किसानों समेत अब पूर्व विदर्भ के धान उत्पादक किसानों तक पहुंच गया है. कांग्रेस की सत्ता में आत्महत्याओं पर राजनीतिक रोटियां सेंकनेवाले भाजपा नेता मौन धारण करे बैठे हुए है यह सवाल तिवारी ने उठाया है.

    बीते पांच सालों में रिकॉर्ड कर्जमाफी, नुकसान मुआवजा, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना, समेत विभिन्न किसान सहुलियतों की योजनाओं के बावजुद किसान और उनके परिवार आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे है. इसके लिए सरकार और प्रशासनिक स्तर पर चर्चा और उपायययोजना नहीं की जा रही है. अधिकारी केवल वातानुकुलित कार्यालयों में बैठकर कागजों पर योजनाएं चला रहे है. जिसकी वजह से किसान आत्महत्या थमने का नाम नहीं ले रही है. कागजों पर कर्जमाफी की घोषणा कर महत्वपूर्ण मुद्दों को दरकिनार किए जाने से विदर्भ के किसानों पर यह नौबत आन पडने की जानकारी तिवारी ने दी है.

    इसी बीच तिवारी नें किसानों पर  प्राकृतिक,अवैध साहुकारी, मायक्रोफायनान्स कंपनियों के कर्ज के जाल  के कारण संकट आने से राज्य और केंद्र सरकार को विदर्भ में किसान आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए रिपोर्ट पेश की है. उन्होंने इस संबंध में 13 सितंबर को राज्य के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से मुलाकात कर चर्चा की, साथ ही यवतमाल जिले में किसान आत्महत्याबाधित इलाकों में पहुंचकर हालातों का जायजा लेने का आग्रह किया.