- अनेक वर्षों से लंबित 13 गांव के सामूहिक वनहक्क दावा भी मंजूर
- जिलाधिकारी ने किए लगातार प्रयास
यवतमाल. पीढी दर पीढी से जंगल क्षेत्रों में रहनेवाले अनुसूचित जनजाति और अन्य वनवासियों की उपजीविका व विकास की परंपरा जंगलों पर निर्भर है. सरकार ने 2006 के अधिनियम के अनुसार समाज को वनों से संबंधित उनका व्यक्तिगत व सामूहिक हक्क मान्य किए है.
यवतमाल जिले के बीते सालभर में जिलाधिकारी अमोल येडगे ने प्रलंबित और नए वनहक्क दावों को मंजूरी देकर आदिवासी और अन्य वनवासियों को खेती और घर का लाभ दिलाया है. सालभर में 370 व्यक्तिगत प्रकरणों में वनपट्टों का वितरण किया गया है. वहीं 65 सामूहिक वनहक्क प्रकरण मंजूर किए गए है. जिससे वनवासियों को स्थायी रूप से अधिकारवाले उपजीविका के साधनों के साथ ही गावों को उनके अधिकार मिले है.
बंदी क्षेत्र के13 सामूहिक वनहक्क दावे हल
उमरखेड तहसील के बंदी वाले सहस्रकुंड इलाके के वनक्षेत्र में भी अनेक वर्षों से लंबित रहनेवाले सामूहिक वनहक्क के 13 दावे हल किए गए है. पैनगंगा अभयारण्य के बंदी रहनेवाले सामूहिक वनहक्क के दावे निकालने के लिए साल 2019 से प्रयास कर रहे है. जिलाधिकारी ने नवंबर 2021 में 13 गांव के दावे मंजूरी दिए जाने से संतोष मिला है. अब इस गांव में जंगल के सीमांकन, तेंदूपत्ता संकलन के अलावा अन्य सभी महत्वपूर्ण पहलुओं का प्रारूप तैयार करने की शुरूआत की है..
-बाबूसिंग जाधव , अध्यक्ष मोरचंडी विकास समिति
अनेक वर्षों से वनवासियों के वनहक्क दावों के मामले प्रलंबित थे. सालभर में 375 वनवासियों को उनका हक दिलवाने की खुशी है. इनमें बंदी क्षेत्र के 13 दावे भी मंजूर किए है. वन क्षेत्र के जिन गांव के लाभार्थियों को अब तक व्यक्तिगत वनहक्क नहीं मिला है उन्होंने कोई भी दो सबूतों के साथ ग्रामपंचायत के पास प्रस्ताव पेश करें.
-अमोल येडगे, जिलाधिकारी