आदिवासीयों के प्रश्न सुलझाने में महाविकास आघाडी सरकार हुई विफल-विधायक डा.संदिप धुर्वे

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    यवतमाल.राज्य की महाविकास आघाडी की सरकार आदिवासीयों के साथ ठगी करने के साथ ही उनके मुददे सुलझाने के हर मोर्चे पर विफल हुई है, यह सरकार आदिवासीयों के अनेक मुददे सुलझा नही पायी है. आदिवासीयों का सर्वंकष विकास, उनकी दिक्कतें,विकास योजनाओं के लिए निधी,बोगस आदिवासीयों के पद रिक्त कर मुल आदिवासीयों की सरकारी नौकरीयों पर नियुक्ती के न्यायालय के निर्णय पर अमल ना कर वर्तमान सरकार ने केवल आदिवासीयों का छल किया है.

    यहां तक की लॉकडाऊन के दौरान आदिवासीयों के लिए खावटी वितरण के दौरान ठेका प्रणाली के तहत भ्रष्टाचार किया गया है, एैसी जानकारी आदिवासी क्षेत्र आर्णी केलापुर विधानसभा निर्वाचनक्षेत्र के विधायक डा.संदिप धुर्वे ने पत्रपरिषद में दी.

    आज 27 नवंबर को विश्राम भवन में आयोजित पत्रपरिषद में उन्होने आदिवासी समुदाय से जुडी विभीन्न समस्याओं और मुददों पर सरकार के विफल होने की बात कर महाविकास आघाडी सरकार की कडी आलोचना की.उन्होने बताया की आदिवासी समुदाय के विकास समेत वनव्यवस्थापन, जमीन के पटटों का वितरण, आदिवासीयों के नाम पर बोगस आदिवासीयों ने हडपी नौकरीयों के संबंध में हर राज्य में राष्ट्रपति की सुचना पर जनजाती सलाहकार परिषद का गठन होता है.

    राज्य में भी यह परिषद है,जो आदिवासी समुदाय से जुडे नितीगत फैसले लेती है,इसके मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे अध्यक्ष है, लेकिन इसकी दो बरसों से बैठक नही हो पायी है, उन्होने बताया की राज्य में इसकी आखिरी बैठक तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के कार्यकाल में हुई थी, इसके बाद से बैठक नही ली गयी है.

    इसका अर्थ यह महाविकास आघाडी सरकार आदिवासीयों के संबंधमें पुरी तरह उदासिन है.भारतीय संविधान के पांचवे अनुच्छेद में आदिवासीयों से जुडे फैसले लेने के लिए सलाहकार परिषद के कामकाज दर्ज है,जिससे यह सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है,एैसा आरोप लगाते हुएविधायक धुर्वे ने अपना निषेध दर्ज किया.

    आदिवासी खावटी के नाम पर बांटी घटीया सामुग्री

    बोगस आदिवासीयों के पद खाली न कर सरकार हर माह कर रही है 600 करोड खर्च 

    विधायक धुर्वे ने बताया की पहले लॉकडाऊन के दौरान आदिवासीयों को खावटी के तौर पर 2 हजार रुपयों की मदद राशी बांटाने की मांग उन्होने खुद मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे से लिखित तौर पर की थी, जिसे उन्होने माना था,खावटी का सामान घटीया स्तर का होने से इसका अनुदान राशि देने की मांग की गयी थी, लेकिन राज्य में आदिवासीयों को वस्तुओं के रुप में जो खादय सामुग्री बांटी गयी, वह घटीया स्तर की थी, इसमें सरकार से जुडे ठेकेदारों को घोटाला करना था.

    इसके बाद ठेका हासिल करने के लिए कॉंग्रेस, शिवसेना, और राष्ट्रवादी से जुडे ठेकेदार प्रयासरत थे, इसके बाद प्रत्यक्ष तौर पर यह घटीया अनाज, चायपत्ती, मसालें बांटी गयी,उन्होने अप्रत्यक्ष तौर पर सांसद गवली के निकटवर्ती सईद खान के खिलाफ मुंबई में ईडी में हुई कारवाई का हवाला देकर कहा की, इसी व्यक्ती को आदिवासी खावटी वितरण का ठेका दिया गया था, इस दौरान राज्यभर में 11 लाख लाभार्थीयों कों खावटी के तहत अनाज और सामुग्री बांटी गयी.

    इसमें प्रति लाभार्थी 1300 रुपयों की कमाई की गयी. जिसमें इस घोटाले का अनुमान लगाया जा सकता है,जबकी अब भी पांच लाख लाभार्थीयों को खावटी तक बांटी नही गयी है.उन्होने बताया आदिवासी मंत्री केसी. पाडवी ने खुद इसका संज्ञान न लेने से उन्हे सुमोटो पत्र भेजा है.साथ ही कहा की इस मामलें में राज्यपाल के प्रधानसचिव ने घटीया स्तर के खावटी की शिकायतों के बाद संज्ञान लेकर निरिक्षण किया गया.

    राज्य में 12 हजार 500 बोगस आदिवासीयों नें राज्य में सरकारी पद फर्जी कागजातों के आधार पर हडपने से 2017 में सुप्रिम कोर्ट ने जगदीश बहेरा मामलें में फैसला देकर राज्य में बोगस आदिवासीयों से सरकारी नौकरीयां वापस लेकर उनपर अपराध दर्ज करने, जो वेतन लिया गया, उसे रिकवर करने के निर्देश दिए थे.

    इसके तहत राज्य में 12 हजार 500 में केवल 3 हजार 43 पद रिक्त किए गए, लेकिन इन दो सालों में केवल 61 आदिवासीयों को इन पदों पर सरकारी नौकरीयां दी गयी, जबकी 12 हजार से अधिक पद कब भरे जाएंगे इसका कोई ठिकाना नही है, उन्होने बताया की जो बोगस आदिवासी सरकारी पदों पर बैठे उनपर सरकार हर महिने 600 करोड रुपए खर्च कर रही है.

    विधायक धुर्वे ने बताया की इस मामलें में 2 मार्च 2021 को उन्होने विधानसभा में तारांकीत प्रश्न किया था, जिसपर मुख्यमंत्री ने जवाब देते हुए कहा था की, सुप्रिम कोर्ट के फैसले के बाद अवैध तौर पर सरकारी सेवा में शामिल होनेवालों को सरकारी सुरक्षा नही देने और एैसे अधिकारी, कर्मचारीयों के पद रिक्त कर अधिसंख्य पदों पर वर्ग करने के निर्देश दिए गए है.

    कोविड 19 महामारी के कारण 2020 में भरती प्रक्रिया न चलने लेकिन जारी वर्ष में अधिसंख्य पदों के कारण रिक्त सभी पद भरे जाने की जानकारी दी थी, मुख्यमंत्री के इस जानकारी से जुडा सरकारी रिकॉर्ड भी उन्होने पत्रपरिषद में पेश किया.