
महागांव. हिंगोली लोकसभा क्षेत्र में सांसद हेमंत पाटिल के जनता से टूटे रिश्ते और उनके विभिन्न कारनामों से ऐसा लगता है कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में हेमंत पाटिल को दोबारा मौका देने की गलती कभी नहीं करेगी. राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर हेमंत पाटिल जीत भी गये तो उनकी जमानत जब्त हो जायेगी. पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रचार के दौरान हेमंत पाटिल ने जमकर प्रचार किया था और हेमंत पाटिल कांग्रेस उम्मीदवार सुभाष राव वानखेड़े के खिलाफ 2 लाख 77 हजार वोटों के अंतर से निर्वाचित हुए थे.
लेकिन पिछले पांच वर्षों में सांसद के रूप में उन्होंने क्षेत्र में जो अलख जगाई है, उससे जनमत उनके खिलाफ हो गया है और संकेत हैं कि आगामी चुनाव में हेमंत पाटिल का सूपड़ा साफ हो जायेगा. एक सांसद के रूप में हेमंत पाटिल का करियर काफी हद तक निराशाजनक रहा है. उद्धव ठाकरे ने विश्वास में लेकर हेमन्त पाटिल को नामांकित किया और शिव सेना की भगवा लहर में, हेमन्त पाटिल संसद में पहुंच गए, लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ उनका विश्वासघात निष्ठावान शिवसैनिकों और निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को रास नहीं आया.
‘खोके’ सम्राट हेमंत पाटिल उद्धव गुट से बेईमानी कर शिंदे गुट में शामिल हो गए. हिंगोली निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को हेमंत पाटिल की पार्टी के प्रति वफादारी के पीछे के कारणों का अच्छी तरह से अंदाजा है. जनता को इस कड़वी हकीकत का हमेशा एहसास रहा है कि ‘गोदावरी’ के टर्नओवर और एमपी के पांच साल के कार्यकाल को सुरक्षित करने के लिए हेमंत पाटिल ने खोके सरकार का समर्थन किया था. हेमंत पाटिल ने शिवसेना के भरोसे पर अपनी वित्तीय महाशक्ति बनाई. जनता निश्चित रूप से इतनी भोली नहीं है कि यह न समझे कि इस वित्तीय साम्राज्य पर ईडी की नज़र से बचने के लिए हेमंत पाटिल ने शिंदे समूह से नाता जोड़ लिया.
भले ही हेमंत पाटिल बीजेपी और ईडी की कार्रवाई से बच गए हों, लेकिन इस चुनाव में जनता दरबार में उनका खेल कितना खराब होने वाला है, यह बताने के लिए किसी ज्योतिषी की जरूरत नहीं है. सत्ता के भरोसे हेमंत पाटिल ने ‘गोदावरी’ का विस्तार किया. बैंकर बन चुके हेमंत पाटिल अब उद्यमी बनने का सपना देखते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने उमरखेड में वसंत शुगर फैक्ट्री के माध्यम से चीनी सम्राट बनने की दिशा में अपनी यात्रा शुरू की है.
हेमंत पाटिल अपनी झोली भरने के नाम पर आसानी से मतदाताओं और निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को भूल गए हैं. निर्वाचन क्षेत्र से उनका नाता हमेशा टूटा हुआ है और उनका पिछला जनसंपर्क अब दस प्रतिशत पर आ गया है. जैसे-जैसे सत्ता और धन का नशा उनके सिर पर चढ़ा है, वे भूल गए हैं कि उन पर लोगों का कुछ बकाया है. महगाव तालुका से उनका कोई संबंध नहीं है. जुलाई महीने में महगाव तालुका में महंगाई का कहर टूटा. किसानों को जीवन भर के लिए अपूरणीय क्षति हुई.
किसानों की पीड़ा जानने का समय नहीं मिला हेमंत पटल को. एक बार जब वह तालुका में अपना चेहरा दिखाते हैं, तो उसके बाद उन्हें यह भी पता नहीं चलता कि महागाओ नामक तालुका उनके निर्वाचन क्षेत्र में है या नहीं. भारी बारिश के दौरान माहुर में हेमन्त पाटिल ने वीरता का प्रदर्शन किया. समर्थकों से घिरे हुए उन्होंने तहसीलदार को आड़े हाथों लिया और उनका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया. राजनीतिक मकसद के लिए हेमंत पटल की यह नौटंकी तो ठीक है, लेकिन इससे मरते किसानों का कोई भला नहीं हुआ है.
इसके बाद हेमंत पटल ने वही पांचवां प्रयोग नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में किया. अस्पताल अधीक्षक डॉ. हेमंत पाटिल द्वारा श्याम वाकोड़े से टॉयलेट साफ कराने का आक्रोश सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. डेंगू, मलेरिया और वायरल संक्रमण के कारण सैकड़ों मरीज मृत्युशय्या पर पहुंच गए. विधानसभा क्षेत्र में सीवर ओवरफ्लो हो गए. वहां कूड़े के ढेर लगे थे. गंदगी की स्थिति चरम सीमा पर पहुंच गई, जिसके परिणामस्वरूप महामारी हुई.
जनता के प्रतिनिधि के तौर पर इस समग्र बीमारी की जिम्मेदारी लें. उनके लिए शौचालय साफ करने के लिए अस्पताल के अधीक्षक को दंडित करना, जबकि यह उनकी अपनी गलती है, चोर को छोड़ कर संन्यास लेने जैसा है. डॉ. श्याम वाकोडे आदिवासी समुदाय से हैं. अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों से आदिवासी समाज काफी आक्रोशित है. हेमंत पाटिल के खिलाफ आदिवासियों के मार्च निकल रहे हैं. हिंगोली निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासी मतदान निर्णायक है. आगामी चुनाव में एक भी आदिवासी मतदाता के हेमंत पाटिल को वोट देने की उम्मीद नहीं है, इसलिए उनकी संभावित हार पहले से ही दिख रही है.
हालाँकि अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार करने और उनसे शौचालय साफ कराने के वीरतापूर्ण कृत्य से जनता का अस्थायी तौर पर मनोरंजन तो हो जाता है, लेकिन इससे बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं होता है. समझदार मतदाता इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए बेहतर होगा कि हेमंत पटल अब हिंगोली छोड़ दें. जनता के साथ उनके टूटे नाते और उनकी निष्क्रियता के कारण आगामी चुनाव में उनकी जमानत जब्त की प्रबल संभावनाएं नजर आ रही है.