हडताल बरकरार प्रशासनिक प्रयासो पर उठे सवाल, बसो के पहिए थमने से देहाती इलाको के विद्यार्थी भुगत रहे खामियाजा

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    वणी. राज्य सरकार की उदासीनता के कारण पिछले करीब तीन सप्ताह से जारी एसटी कर्मचारियों की बेमियादी हड़ताल खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. बसें बंद हैं और खामियाजा आम नागरिकों, नौकरीपेशा और व्यापारी वर्ग सहित देहाती इलाकों के छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है. हैरानी की बात है कि निजी क्षेत्र के वाहनों की वैकल्पिक व्यवस्था कराने संबंधी राज्य सरकार के तमाम दावे ढोल की पोल साबित हुए है.

    वणी सहित तहसील के ग्रामीण इलाकों में पढने वाले देहाती व पहाडी क्षेत्रों के बच्चों को सरकारी बसों के अभाव मे शाला-महाविद्यालयों तक पहुंचने मे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड रहा है. एक तरह से जान हथेली पर लेकर वे सफर करने पर मजबूर है. तीन दिन पहले एक दुर्घटना मे दो नन्हें स्कूली छात्रों को जान से हाथ धोना पडा है. वणी में स्थानीय प्रशासन ने बस स्टैंड्स पर गैरसरकारी वाहनों की व्यवस्था किए जाने की घोषणा की थी.

    मगर उक्त योजना पर आज तक अमल नही हो सका है. आम नागरिकों सहित विद्यार्थी वर्ग को अपने गाव-देहात से पढाई के लिए दूसरे शहरों को जाने के लिए बसे नहीं मिल रही है. शासन ने बीते एक सप्ताह से शालाओं को पुन: खुलवा दिया है. मगर गांव-देहात के छात्र-छात्राएं बसों के अभाव मे शाला-महाविद्यालयों में नही पहुंच पा रहे है. 

    पढाई आगे बढ रही है और ये बच्चे शहरी बच्चों के मुकाबले पिछड रहे है. महाराष्ट्र की लाइफ-लाइन कही जाने वाली लाल परी एसटी कर्मचारियों की बेमियादि हडताल के कारण डिपो में ही कैद होकर रह गई है. राज्य सरकार ने उनकी मांगों को सुलझाने की बजाए मौन धारण कर लिया है.

    उलट इसके, हड़ताली कर्मचारियों पर दंडात्मक कार्रवाई भी की जा रही है. बसों के अभाव में विद्यार्थियों के समक्ष उत्पन्न दिक्कतों के कारण  अभिभावकों ने सरकार से जल्द ग्रामीण क्षेत्रों में बस सेवा शुरू करने की मांग की है. कई अभिभावकों के मुताबिक उनके बच्चों को सरकारी बसों के अभाव में आठ-दस किलोमीटर तक का सफर पैदल तय करना पड़ रहा है. इसमें छात्राओं के लिए हमेशा खतरा बना रहता है.