Migrant workers returned home due to hunger, despair, forced to return thousands of miles
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पटना. लॉकडाउन के दौरान भूख एवं निराशा के कारण लाखों प्रवासी अपने सपनों के जीवंत शहरों को छोड़कर बिहार में अपने-अपने घरों को लौट गए लेकिन अब इन्हीं कारणों ने उन्हें दोबारा उन शहरों का रुख करने पर मजबूर कर दिया है जिन्हें वे कोरोना वायरस के डर से छोड़ आए थे। भूख और नाउम्मीदी उन्हें गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और पंजाब लौटने पर मजबूर कर रही है। इन प्रवासियों के नियोक्ता, जिनमें से कई ने लाकडाउन के दौरान वस्तुतः उन्हें छोड़ दिया था, उन्हें वापस लाने के लिए ट्रेन और यहां तक कि विमान के टिकट भेज रहे हैं क्योंकि कारखाने चालू हो चुकें हैं और निर्माण गतिविधि तथा बुवाई का मौसम शुरू हो गया है।

अहमदाबाद, अमृतसर, सिकंदराबाद और बेंगलुरु जैसी जगहों के लिए मेल और एक्सप्रेस ट्रेनें पूरी तरह भरकर चल रही हैं, जहां से कुछ समय पहले ये कामगार पैदल चलकर, साइकिल चलाकर और ट्रकों के जरिए यहां तक कि कंटेनर ट्रकों और कंक्रीट मिक्सिंग मशीन वाहन में छिपकर आनन-फानन में अपने घर लौटे थे। पूर्व मध्य रेलवे मंडल के सूत्रों के अनुसार हाल के दिनों में विभिन्न ट्रेनों जैसे मुज़फ़्फ़रपुर-अहमदाबाद स्पेशल में औसतन 133 प्रतिशत, दानापुर-सिकंद्राबाद विशेष ट्रेन में 126 प्रतिशत, जयनगर-अमृतसर विशेष ट्रेन में 123 प्रतिशत, दानापुर-बेंगलुरु विशेष ट्रेन में 120 प्रतिशत, पटना-अहमदाबाद विशेष ट्रेन में 117 प्रतिशत, सहरसा-नई दिल्ली विशेष ट्रेन में 113 प्रतिशत ट्रेन में और दानापुर-पुणे विशेष ट्रेन में औसतन 102 प्रतिशत यात्री सफर कर रहे हैं। पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार ने पीटीआई-भाषा को बताया कि रेलवे प्रतीक्षा सूची की बारीकी से निगरानी कर रहा है और यात्रा को सुगम बनाने के लिए आरक्षण की स्थिति को जल्दी से अपडेट कर रहा है।

उन्होंने कहा, “अगर जरूरत पड़ी तो भारी ट्रैफिक वाले मार्गों पर और ट्रेनें चलाई जा सकती हैं।” पूर्व मध्य रेल में दानापुर, सोनपुर, दीनदयाल उपाध्याय, समस्तीपुर और धनबाद रेल मंडल शामिल हैं। उत्तर बिहार के दरभंगा जिले से आई एक खबर में कहा गया है कि महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश की नंबर प्लेट वाली लक्जरी बसों और अन्य वाहन प्रवासियों को उनके कार्यस्थल पर वापस ले जाते हुए दिख रहे हैं। विनिर्माण, औद्योगिक सामग्री और रियल एस्टेट क्षेत्र की कई कंपनियों ने अपने कुशल और अर्ध-कुशल कर्मचारियों को वापस लाने के लिए हवाई यात्रा की भी व्यवस्था की है। लाकडाउन शुरू होने से पहले पंजाब में खेतों में काम करने वाले आनंदपुर गांव के कुशो मंडल ने कहा “मेरे पास जो भी पैसा था सब खर्च हो गया। मुझे नहीं पता कि मुझे मनरेगा परियोजनाओं में काम करने के लिए जॉब कार्ड कब मिलेगा। हम कोरोना वायरस से खुद को बचाने के चक्कर में यहां रहकर भूख से ही मर जाएंगे।” पंजाब के खेतों में काम करने वाले एक अन्य मजदूर रतियारी-खिरिकपुर गाँव निवासी राजीव चौपाल ने कहा, “मैं पंजाब में अपने नियोक्ता के खेत में लौट रहा हूं। उन्होंने मुझे अच्छे पैसे देने का वादा किया है ”। उन्होंने कहा कि उन्हें एक एकड़ खेत पर 3,500 रुपये जो कि प्रकोप से पहले की दर थी, के बदले धान के पौधे लगाने के लिए 5,000 रुपये की पेशकश की जा रही है ।

उनके परिवारों को भी 15,000-20,000 रुपये एडवांस में दिए जा रहे हैं। मंडल और चौपाल जैसे लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ग्रामीण आजीविका को प्रोत्साहन देने के लिए 50,000 करोड़ रुपये के गरीब कल्याण रोज़गार अभियान के शुभारंभ के बावजूद अपने पुराने कार्यस्थलों के लिए लौट रहे हैं। मिशन के रूप में शुरू किया गया यह अभियान बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और झारखंड के 25,000 से अधिक प्रवासी श्रमिकों वाले 116 जिलों में लागू किया जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि राज्य के 20 लाख से अधिक मूल निवासी लॉकडाउन के दौरान वापस आ गए हैं और यह अभियान प्रवासियों के लिए रोजगार पैदा करने के उनकी सरकार के प्रयासों का पूरक होगा।

उन्होंने प्रवासियों को उनके गांवों में काम देने का वादा किया था ताकि वे आजीविका के लिए दूसरे राज्यों में वापस जाने को मजबूर न हों। हालांकि, यह वादा, बिहार के प्रवासी मजदूरों के बीच विश्वास बहाल करने में विफल रहा जो वर्षों से दिल्ली, महाराष्ट्र, कोलकाता, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब और हरियाणा के कारखानों और खेतों में काम कर रहे थे। रतियारी गांव के पृथ्वी मुखिया ने कहा, “पंजाब से लौटे हुए अभी डेढ़ महीना हो गया है। मुझे काम पाने के लिए अभी तक जॉब कार्ड नहीं मिला है। अगर मुझे यह मिल भी जाता है, तो भी मुझे मजदूरी के रूप में एक दिन में 192 रुपये मिलेंगे। मुझे पंजाब के खेतों में काम कर इससे बहुत-बहुत ज्यादा पैसा मिलेगा।” अरवल जिले के चुल्हान बीघा गांव के विशाल कुमार जो कि अपने घर वापस आने से पहले मुंबई में एक दुकान पर काम करते थे, ने कहा, “अब तक उपयुक्त नौकरी पाने में सफल नहीं हो पाया हूं। मैं कुछ और समय तक प्रतीक्षा करूंगा। अगर मुझे काम नहीं मिल पाता है, तो मैं लौट जाऊंगा। मेरा नियोक्ता मुझे प्रति माह 16,000 रुपये का वेतन दे रहा था। उसने मुझे कहा था कि मैं कभी भी आ सकता हूं और ड्यूटी फिर से शुरू कर सकता हूं”। अधिक गरीबी और कम कीमत पर मजदूरों की उपलब्धता के कारण बिहार हमेशा से बाहर के उद्यमियों के लिए एक पसंदीदा भूमि रही है जो इन श्रमिकों को अपने कारखानों और खेतों में वापस लाने के लिए तरह तरह के प्रलोभन का सहारा ले रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बेंगलुरु की एक रियल एस्टेट कंपनी बढ़ई का काम करने वाले एक समूह को चार्टर्ड फ्लाइट से पटना से हैदराबाद ले गई है। चेन्नई स्थित एक अन्य रियल एस्टेट कंपनी ने पटना से 150 कुशल श्रमिकों को ले जाने के लिए विमान किराए पर लिया था । मई के पहले सप्ताह में ही 200 से अधिक कामगार, जो होली के अवसर पर बिहार आए थे और लॉकडाउन के कारण वापस नहीं जा सके थे, वे तेलंगाना लौट गए थे। एक कहावत के अनुसार ‘घर वही है जहां दिल लगे’ लेकिन भूख भी एक वास्तविकता है जो कोई सीमा नहीं जानती है- भयावह कोरोना वायरस के कारण खड़ी की गई सीमा को भी नहीं- क्योंकि आजादी के बाद के सबसे बड़े पलायन की पीड़ा को पीछे छोड हजारों लोग बिहार से अपने कार्यस्थलों को लौटने लगे हैं।