ओमप्रकाश मिश्र
रांची. चैंबर ऑफ कॉमर्स का चुनाव जितने के बाद हर्ष व्यक्त करते हुए डॉक्टर अभिषेक के रामाधीन ने कहा कि अमेरिका और यूरोप में अपनी चिकित्सीय सेवा छोड़कर झारखंड में योगदान देने और चैंबर ऑफ कॉमर्स का चुनाव लड़ने के पीछे मेरी मानसिकता मेरे स्वर्गीय पिता के अधूरे सपनों को पूरा करना था। अपने पिता स्व. आर. डी. सिंह की चर्चा करते हुए डॉक्टर अभिषेक ने कहा कि मेरे पिता झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव के पद पर आरुढ़ थे वो एक सफल व्यवसायी थे। सचिव के पद तक पहुंचने के पीछे उनकी मंशा थी समाज का सेवा करना। मैं उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर चिकित्सीय सेवा के अतिरिक्त चैंबर ऑफ कॉमर्स में रहकर बहुत सारी समस्याओं के निवारण पर काम कर सकूंगा इसी अभिप्राय को सुनिश्चित करने हेतु मैं चुनाव लड़ा और निर्दलीय के रूप में चुनाव जीत कर चैंबर ऑफ कॉमर्स का एक सफल प्रत्यासी बनकर सामाजिक सरोकार से जुड़ी समस्याओं का भी निराकरण कर सकूंगा।
चैंबर ऑफ कॉमर्स में निर्दलीय प्रत्यासी के रूप में चुनाव लड़कर डॉक्टर अभिषेक 1135 मत प्राप्त कर विजयी रहे। चुनाव जितने के पश्चात उन्होंने कहा की मेरे पिताजी का सपना था कि एक सफल व्यवसायी बनकर सामाजिक कार्यों में योगदान दिया जा सकता है, अमेरिका और यूरोप में रहकर वहां अपनी चिकित्सीय सेवा देने के काम में बार – बार पिताजी के अधूरे सपने को पूरा करने की बात मस्तिक में कौंधने लगी और मैंने ठान लिया की झारखंड जाकर चैंबर ऑफ कॉमर्स का चुनाव जीतकर मैं पिताजी के अधूरे सपनों को पूरा करूँगा और आज चुनाव जीतकर मुझे अत्यंत हर्ष महसूस हो रहा है।
डॉक्टर अभिषेक के रामाधीन ने कहा कि फेडरेशन ऑफ़ झारखंड चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एफजेसीसीआई) की स्थापना 15 सितम्बर 1960 में हुई थी। आज एफजेसीसीआई पुरे झारखंड राज्य के व्यापारीयों उद्योगपतियों के शीर्ष निकायों का प्रतिनिधित्व करता है। वाणिज्य और उद्योगों के उत्थान और क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के प्रतिपादकों के ऊपर जागरूकता उत्पन्न करने की जिम्मेदारी एफजेसीसीआई पर है। इसी जिम्मेदारी को ध्यान में रखकर डॉक्टर होने के बाद भी मैंने चुनाव लड़ना उचित समझा और आज चुनाव जीतकर मैं बहुत उत्साहित हूँ कि व्यवसाय से जुड़कर भी मैं सामाजिक सरोकार से जुड़कर काम कर पाऊंगा।