वन आश्रित समुदाय का वनों के साथ सह-अस्तित्व का सम्बन्ध: एल. खियांगते

    Loading

    -ओमप्रकाश मिश्र 

    रांची: झारखंड राज्य (Jharkhand State) में वन अधिकार कानून 2006 (Forest Rights Act 2006) के अनुपालन को गति देने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट भवन, रांची (Ranchi) के सभागार में एक राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गयाI कल्याण विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए वन एवं राजस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव, एल. खियांगते ने कहा कि वन आश्रित समुदाय का वनों के साथ सह-अस्तित्व का सम्बन्ध हैI वन आश्रित समुदाय वनों के संरक्षण, संवर्धन और जैव विविधता को बनाये रखने में सदियों से अपनी भूमिका निभाते आ रहे हैं I 

    वन अधिकार क़ानून वन आश्रित समुदायों के इन्हीं पारम्परिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है I झारखण्ड में वन आश्रित समुदायों को इस कानून के तहत अधिकार दिए जाने की प्रक्रिया चल रही हैI आंकड़ों के लिहाज से झारखण्ड में व्यक्तिगत और सामुदायिक वन पट्टा पड़ोसी राज्य छतीसगढ़ और उड़ीसा से कम है, लेकिन सरकार इस दिशा में कृतसंकल्प हैI इस कानून के अनुपालन में वन, राजस्व, कल्याण, पंचायती राज सहित कई विभागों और सिविल सोसाइटी का सामूहिक दायित्व निहित है और आज की यह कार्यशाला सबको अभिप्रेरित करने की दिशा में एक पहल हैI

    सहमति बनाने की दिशा में की गई पहल

    कार्यक्रम के प्रारम्भ में कल्याण विभाग के सचिव के के सोन ने कहा कि इस कानून के लागू हुए 15 साल हो गए हैं और झारखण्ड के आदिवासी और अन्य वन आश्रित समुदायों के सर्वांगीण विकास के लिए यह जरुरी है I इस कानून के तहत जंगल के जमीन पर व्यक्तिगत और सामूहिक हक़ मिलने के बाद कृषि तथा आजीविका के कई कार्यक्रमों यथा पी एम किसान, पी। एम आवास, के। सी। सी सहित दर्जनों स्कीमों का लाभ जंगल अधिकार अधिनियम के लाभुकों को मिल सकता है I उन्होंने कहा कि दवा सृजन की प्रक्रिया से जुड़े मुद्दों और चुनौतियों को दूर करने के लिए आज इस कानून से जुड़े सभी पक्षों के साथ सहमति बनाने की दिशा में पहल की गई है I उन्होंने कहा कि कार्यशाला में मानक संचालन प्रक्रिया  के मसौदे पर राजस्व, वन, सिविल सोसईटी के साथ गहन चर्चा की गई Iशीघ्र ही आवश्यक कार्यवाही पूरी कर मानक संचालन प्रक्रिया  को अंतिम रूप दिया जायेगा ताकि राज्य में जंगल अधिकार अधिनियम (एफ आर ए ) कानून के अनुपालन को गति दी जा सके I उन्होंने राज्य में जंगल अधिकार अधिनियम के लाभुकों के नाम रिकॉर्ड ऑफ़ राइट्स में दर्ज किये जाने की भी जरुरत बताई। इस अवसर पर कल्याण विभाग के टीम के छतीसगढ़ और उड़ीसा के भ्रमण की प्रस्तुति हुई।

    झारखण्ड में भी बदलाव लाया जा सकता है

    कल्याण विभाग के अपर सचिव अजय नाथ झा ने कहा कि आबादी की तुलना में छतीसगढ़ कम है, लेकिन वहां 8 लाख से ज्यादा व्यक्तिगत पट्टे दिए गए हैंI ग्रामीण विकास, मनरेगा, कृषि और वन विभाग से सामूहिक पहल से जंगलों के संरक्षण संवर्धन के साथ-साथ आदिवासियों और अन्य वन आश्रित समुदायों के आजीविका संवृधि के दर्जनों कार्य चल रहे हैं इससे लोगों के सामाजिक और आर्थिक विकास के आंकड़ों में सकारात्मक बदलाव आया है I भूमि समतलीकरण, किसान सम्मान निधि, सिंचाई कूप, पीएम आवास आदि का लाभ जंगल अधिकार अधिनियम  पट्टाधारकों को भी मिल रहा है I उन्होंने उम्मीद की कि इस अनुभव से झारखण्ड में भी बदलाव लाया जा सकता है I कल्याण विभाग के अपर सचिव रवि रंजन मिश्रा में उड़ीसा के अनुभवों को रखते हुए कहा कि 3 लाख से ज्यादा जंगल अधिकार अधिनियम  के लाभुकों को आजीविका के विभिन्न कार्यक्रमों से जोड़ा गया है I वन आश्रित समुदायों के खिलाफ चल रहे वन अपराधों के मामलों को उड़ीसा सरकार ने वापस ले लिया है I उड़ीसा में 145 जंगल अधिकार अधिनियम  सेल का गठन किया गया है जो सफलतापूर्वक वन आश्रित समुदायों को तकनीकी सहायता दे रहे हैं।

    कई मुद्दों पर हुई चर्चा

    झारखण्ड वन अधिकार फोरम की ओर से फादर जोर्ज मोनिपाली ने मानक संचालन प्रक्रिया   के मौसेदे के प्रस्तुति की I इस मौसोदे पर वन, राजस्व एवं पंचायती राज विभाग सहित विभिन्न जिलों से आये प्रतिनिधियों ने अपना मंतव्य रखाI तीन उपसमितियों ने मानक संचालन प्रक्रिया, दावों के सृजन के पश्चात ली जाने वाली गतिविधियों तथा जंगल अधिकार अधिनियम से जुड़े चुनौतियों एवं मुद्दे पर अलग-अलग समिति ने चर्चा की I समिति के अनुशंसाओं एवं सुझाओं को कल्याण सचिव के. के. सोन के समक्ष प्रस्तुत किया गयाI मानक संचालन प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के बाद इस कानून के अनुपालन से जुड़े सभी स्टेक होल्डरों को व्यापक स्तर पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता महसूस की गईI दावों के सृजन के पश्चात मनरेगा, कृषि, सहकारिता, ग्रामीण विकास, पंचायती राज के योजनाओं का लाभ लाभुकों को देने का सुझाव दिया गया।