लखनऊ : आजमगढ़ लोकसभा (Azamgarh Lok Sabha) उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत को प्रदेश मे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) के नेतृत्व और सुशासन पर प्रदेशवासियों के अगाध विश्वास के प्रतीक के तौर पर देखा जा रहा है। बीजेपी (BJP) के प्रत्याशी दिनेश लाल निरहुआ (Dinesh Lal Nirahua) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) को 8679 वोटों से हरा कर यह सीट जीत ली है। जहां बीजेपी के निरहुआ को 3,12,768 वोट मिले, वहीं सपा के धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 वोट प्राप्त हुए। तीसरे प्रत्याशी बहुजन समाज पार्टी के शाह आलम को 2,66,210 वोट मिले।
यह जीत इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ उन कुछ सीटों मे शामिल था। जहां विपक्षी दलों को सफलता मिली थी। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की यहां से हुई जीत से इस क्षेत्र में बीजेपी के प्रभाव को लेकर सवाल भी उठे थे। लेकिन तीन साल के अंदर ही अखिलेश यादव ने विधान सभा का चुनाव जीतने के बाद यहां से इस्तीफा दिया, जिसके बाद यहां उपचुनाव हुए और इसमे बीजेपी के प्रत्याशी दिनेश लाल निरहुआ की जीत से नए स्थानीय और राजनीतिक समीकरण सामने आए हैं। इस सीट पर सपा की तथाकथित पकड़, और अखिलेश यादव के पारिवारिक संबंधी धर्मेंद्र यादव के चुनावी मैदान मे उतरने के बाद यहां का चुनाव अत्यंत रोचक हो गया था। लेकिन जनता ने एक बार फिर सपा को नकार कर बीजेपी में अपने विश्वास की फिर पुष्टि कर दी है।
जनता की जीत!
आजमगढ़वासियों आपने कमाल कर दिया है। यह आपकी जीत है। उपचुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही जिस तरीके से आप सबने भाजपा को प्यार, समर्थन और आशीर्वाद दिया, यह उसकी जीत है। यह जीत आपके भरोसे और देवतुल्य कार्यकर्ताओं की मेहनत को समर्पित है। pic.twitter.com/mZ6YWzxFv5— Nirahua Hindustani (@nirahua1) June 26, 2022
यह उल्लेखनीय है कि इस उपचुनाव के महत्व के बावजूद सपा नेता और यहीं से पूर्व सांसद रहे अखिलेश ने यहां से सपा उम्मीदवार और अपने संबधी धर्मेंद्र यादव के लिए चुनाव प्रचार में कोई रुचि नही दिखाई। स्थानीय मतदाताओं के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सक्रिय प्रचार किए जाने की वजह से यहां का राजनीतिक वातावरण स्पष्ट रूप से बीजेपी के पक्ष मे हो गया, और सपा का प्रचार अत्यंत प्रभावहीन रहा। स्थानीय निवासी इसे तुष्टीकरण की राजनीति के विरूद्ध जनादेश के साथ ही सुशासन का मजबूत समर्थन मानते हैं। यही नही सपा ने जिस तरह यहाँ मुस्लिम और दलित की उपेक्षा की, उसका स्पष्ट असर चुनाव परिणाम पर देखा गया।