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    राजेश मिश्र 

    लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव नजदीक है और सभी प्रमुख दल अपना-अपना मोर्चा खोल चुनावी समर की तैयारी में लग चुके हैं। सूबे की जातीय सियासत का केंद्र एक बार फिर ब्राह्मण बन चुके हैं और ब्राह्मणों को रिझाने के लिए सियासी दलों द्वारा तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे है। करीब 15 फीसदी मतों वाला यह वर्ग आज सूबे की सियासत का केंद्र बना हुआ है।

    विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ब्राह्मणों में उपजी कथित नाराजगी को सपा ने लपका और समाजवादी पार्टी के दो नेता ब्राह्मणों में अलख जगाने के काम में लग गए। वर्ष 2007 में अपने सोशल इंजीनियरिंग के बल पर सत्ता का स्वाद ले चुकी बसपा सुप्रीमो मायावती को एक बार फिर से ब्राह्मण याद आने लगे। उन्होंने इसके लिए 23 जुलाई को ब्राह्मण सम्मेलन करने की घोषणा की और स्थान अयोध्या को चुना, जोकि भाजपा की सियासत का केंद्र रहा है। मायावती की इस घोषणा के बाद भाजपा, सपा और कांग्रेस की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक था। कारण भी साफ है कि हाल की सियासत में मायावती पर भाजपा के बगलगीर होने के आरोप भी लगते रहे है। ऐसे में भाजपा से नाराज और सपा से दूरी रखने वाले ब्राह्मण मतों के लिए बसपा एक विकल्प होगी जोकि प्रमुख विपक्षी दल सपा को केवल नुकसान पहुंचाएगी। उधर कांग्रेस ने भाजपा को हराने के लिए सभी विकल्प खुले रखे हैं तो डूबती बसपा को तिनके का सहारा ही काफी है। प्रदेश में फिलहाल पश्चिम से लेकर पूर्व तक छाई इस ब्राह्मण राजनीति को चमकाने के लिए सभी दल अपने अपने हिसाब से ताना-बाना बुनने में लग चुके है।

    बिकरू काण्ड के बाद विकास दूबे एनकाउन्टर से उपजी कथित नाराजगी, योगी सरकार और संगठन में कई ब्राह्मण चेहरे फिर भी उठे सवाल

    सत्ताधारी दल भाजपा में विधानसभा अध्यक्ष सहित एक उपमुख्यमंत्री, दो कैबिनेट मंत्री के साथ ही अभी तक डीजीपी का पद पर ब्राह्मण को रखा और मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव गृह जैसा महत्वपूर्ण पद पर भी ब्राह्मण चेहरे अभी भी विराजमान है। हालांकि हाल ही में काशी में प्रधानमंत्री मोदी ने विधानसभा चुनाव काम और विकास के मुद्दे पर लड़ने की बात कही थी लेकिन ब्राह्मणों को साधने को लेकर मायावती की इस घोषणा और सपा की तैयारियों ने भाजपा को चिंता में जरूर डाल दिया है। गौरतलब है कि विकास दूबे एनकाउन्टर के बाद अमर दूबे का एनकाउन्टर हुआ और अमर की नवविवाहिता ख़ुशी दूबे को जेल में डाल दिया गया था जोकि आज भी जेल में है। जानकारों का कहना है कि शुरुआत से ही ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप योगी सरकार पर लग ही रहा था कि इस घटना ने उसमें घी का काम किया और सियासी दलों को ब्राह्मण मतों को भुनाने का मौका मिल गया। विकास दूबे के एनकाउन्टर और उसपर उठ रहे सवाल से सत्ता में बैठे वह ब्राह्मण चेहरे भी नहीं बच सके हैं और उनपर मूक दर्शक होने का आरोप भी लगा। फिलहाल बीजेपी ब्राह्मणों की इस नाराजगी को दूर करने के लिए अपने संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में अन्य जातियों के अलावा कुछ और ब्राह्मण चेहरों को जगह दे सकती है। भाजपा सियासी तौर पर इस समय कई मोर्चे पर संघर्ष कर रही है। 

    ब्राह्मणों को लेकर बसपा सुप्रीमों की हालिया घोषणा ने फिर गर्म की सूबे में ब्राह्मण सियासत

    तिलक, तराजू और तलवार…. जैसे नारे से हुए सियासी नुकसान से सबक ले मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला निकाला और नया नारा भी दिया कि “हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं”। अपने इस दांव से माया ने वर्ष 2007 में सत्ता हासिल किया और पांच साल मुख्यमंत्री रहीं। लेकिन इसके बाद लगातार बसपा का सियासी ग्राफ नीचे की ओर खिसकता गया और आज वह आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। साथ ही बसपा पर भाजपा का बगलगीर होने का भी आरोप लगता रहा है। फिलहाल ब्राह्मण कार्ड के भरोसे बसपा 2022 में अपनी खोयी पहचान पाने में जुटी है। बहुजन सामज पार्टी सुप्रीमो का 23 जुलाई से ब्राह्मण सम्मेलन अयोध्या से शुरू करने की घोषणा ने सियासी दलों खासकर सपा और कांग्रेस में खलबली मचा दी है तो बसपा खुद के अस्तित्व के लिए करो या फिर मरो की स्थिति में पहुँच चुकी है।

    मायावती की घोषणा के बाद अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन की तैयारी को देख रहे बसपा सरकार में मंत्री रह चुके नकुल दूबे ने बुधवार को ख़ुशी दूबे का मुद्दा उठाकर एकबार फिर से ब्राह्मण राजनीति को गर्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि बिकरू काण्ड की आरोपी खुशी दूबे यदि कोई कानूनी मदद मांगती है तो पार्टी महासचिव सतीश मिश्र उनकी मदद जरूर करेंगे। बताते चलें कि खुशी दूबे की रिहाई की मांग इस बीच उठती रही है। सियासत के जानकारों के अनुसार सपा और कांग्रेस को डर है कि भाजपा से नाराज चल रहे ब्राह्मण अगर बसपा की तरफ रुख करते हैं तो उनके लिए यह बड़ा सियासी नुकसान होगा। वहीं दूसरी तरफ बसपा सुप्रीमो की यह घोषणा उनके सियासी अस्तित्व की अंतिम लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है इससे संभव हो कि बसपा की डूबती नाव को कुछ सहारा मिल जाय।        

    समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेता भी सक्रिय, ब्राह्मणों को जोड़ने के काम में लगे 

    प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री रहे और ब्राह्मण चेहरे मनोज पाण्डेय पार्टी “समाजवादी प्रबुद्ध सभा” के अध्यक्ष है। उनका कहना है कि 2007 में कानून व्यवस्था के मुद्दे पर मायावती को ब्राह्मणों का साथ मिला और सरकार बनायी लेकिन उन्होंने भाजपा की ही तरह केवल ब्राह्मणों को केवल ठगने का काम किया है। मनोज पाण्डेय के अनुसार ब्राह्मणों की सत्ता में भागीदारी भी भाजपा सरकार में सपा सरकार से कम है और पिछले साढ़े चार सालों की इस सरकार में 1249 ब्राह्मणों की हत्या की जा चुकी है। इसके अलावा वर्ष 2004 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय और मेरे प्रयासों से “परशुराम जयंती” पर अवकाश की घोषणा की गयी थी जिसको कि भाजपा की योगी सरकार ने समाप्त कर दिया। ऐसे में ब्राह्मणों को सम्मान कहाँ से मिला? उन्होंने बताया कि बसपा को आज साढ़े चार साल में ब्राह्मणों की याद आई है जबकि वह अभी तक 57 जनपदों में ब्राम्हण सम्मेलन कर चुके है।         

    दूसरी तरफ मायावती के 23 जुलाई को प्रस्तावित ब्राह्मण सम्मेलन स्थल अयोध्या से सटे सुल्तानपुर की लम्भुआ विधानसभा सीट से विधायक रहे संतोष पाण्डेय ने “परशुराम चेतना पीठ” नामक एक मंच बनाकर ब्राह्मणों को जोड़ने का काम विकरू काण्ड के बाद से ही शुरू कर चुके है। पूर्व विधायक संतोष पाण्डेय का कहना है कि वैसे तो यह उनकी अपनी विचारधारा और संगठन है लेकिन वह समाजवादी पार्टी में हैं और पार्टी ने हमेशा ब्राह्मणों को सम्मान दिया है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण समाजवादी पार्टी के साथ है और आने वाले समय में वह इनको और एकजुट करने का काम करेंगे। उन्होंने बताया कि वह लखनऊ से सटे सुल्तानपुर रोड पर 2 बीघे जमीन में भगवान परशुराम की 108 फीट ऊँची मूर्ती लगवाने जा रहे है। जिसकी स्थापना सपा मुखिया अखिलेश यादव के द्वारा अक्टूबर में कराए जाने की तैयारी है और इसमें 1 लाख से ज्यादा लोगों को इकट्ठा करने की तैयारी है। उन्होंने बताया कि हमारी योजना हर जिले में भगवान परशुराम की मूर्ती लगवाने की है और अभी तक हम 12 जिलों में मूर्ती की स्थापना कर चुके है।

    उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की इस सियासत को करीब से देखने वाले पूर्व प्राचार्य डॉ. इंदुशेखर उपाध्याय का कहना है कि ब्राह्मण स्वयं कभी जातिवादी रहा ही नहीं, ब्राह्मण ने तो हमेशा निर्देश देने का काम किया है। ब्राह्मणों को लेकर आज की यह सियासत केवल राजनीतिक विकृति का ही परिणाम है। जैसे-जैसे समय के साथ राजनीति में बदलाव आता गया वैसे-वैसे ब्राह्मणों को अपना बताने की कवायद की जाने लगी। जबकि ब्राह्मण हमेशा से बुद्धिजीवी रहा है और वह अपना निर्णय सोच समझकर ही लेता है। उनका कहना है कि ब्राह्मण को मनुवादी बताकर एकदल सत्ता हासिल करता है तो उसी सरकार का मंत्री जोकि गणेश पूजा का विरोध कर चुका हो दूसरे दल में आकर पवित्र हो जाता है, इसे राजनीतिक विकृति न कहा जाय तो क्या कहा जाय?

    उत्तर प्रदेश की सियासत और क्या करवट लेती है यह तो वक्त बताएगा लेकिन अभी एक बात तो साफ है कि भाजपा के सामने जहां ब्राह्मण मतों के साथ दलित पिछड़ों को जोड़े रखने की मेहनत है तो वहीं समाजवादी पार्टी जिसपर हमेशा से मुस्लिम हिमायती होने का आरोप लगता रहा है वह हिंदुत्व को लेकर भी नर्म दिखाई दे रही है तो बसपा करो या फिर मरो के दौर से गुजर रही है। कांग्रेस ने तो जमीन पर संगठन खड़ा कर दिया है लेकिन उनमें आपसी तालमेल की अभी भी काफी कमी है, साथ ही प्रदेश प्रभारी प्रयंका गाँधी ने भाजपा को हराने के लिए सभी विकल्प खुले रखे है। फिलहाल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सूबे चुनावी बिगुल बज चुका है और सियासी जोड़ तोड़ का दौर जारी है।

    भाजपा से प्राधानमंत्री मोदी बनारस से पहले ही शंखनाद कर चुके हैं तो बुधवार को सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव राजधानी लखनऊ से उन्नाव तक के लिए रथपर सवार हो चुके हैं जहां उनके कुल 150 जगह स्वागत किये जाने की तैयारी है। कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी पहले ही रोड शो और धरना देकर अपना आगाज कर चुकी हैं तो बसपा सुप्रीमों मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलन की घोषणा कर बिगुल बजा दिया है।